बाबा बैद्यनाथ झा की ग़ज़ल साधना (Baba Baidyanath Jha Ki Rachna Sadhna / Edit. Avinash Bharti)

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जन्म और कर्म की प्रकृति को समझने वाले मनुष्य अपने निर्धारित कार्य को पूर्ण किए बिना सद्गति की राह नहीं पकड़ते हैं। बाबा बैद्यनाथ झा का छ: माह तक कोमा में रहकर वापस आना इसी बात का संकेत है। अपने लेखकीय जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने जिस तत्परता और समर्पण का परिचय दिया है वह स्तुत्य है। मात्र छ: वर्षों में लगभग 25 पुस्तकों का सृजन साधारण नहीं है। हिन्दी छंदों के मर्मज्ञ बाबा बैद्यनाथ झा ने ग़ज़ल और सनातनी छंदों पर शोध कार्य कर, प्रस्तुत कर हिन्दी साहित्य के इस विमर्श को नयी दिशा दी है। इनकी रचनाओं में परम्परा और प्रगतिशीलता एक साथ विद्यमान है जो सर्वथा दुर्लभ ही है। बाबा की ग़ज़लें सामान्यत: शाश्वत, सनातन और सर्वग्राह्य सत्य का उद्घाटन करती हैं किन्तु समकाल का स्वर भी इनसे उपेक्षित नहीं दिखता है। समकालीन विसंगतियों, विद्रूपताओं पर निरंतर सृजन कर इन्होंने समाधान के रास्तों को भी तलाशा है।
शायद यही कारण है कि प्रिय मित्र अविनाश भारती ने इनकी ग़ज़लधर्मिता पर एक मूल्यांकन ग्रंथ सम्पादित करने का विचार प्रस्तुत किया जो आज जीवंत रूप में आपके सम्मुख है। उन्होंने बतौर सम्पादक न सिर्फ़़ उनकी रचनाधर्मिता पर विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया है साथ ही महत्वपूर्ण आलेखों को संकलित कर इसे भविष्य की निधि के रूप में सहेजा भी है।

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