सुनो मनोरमा! लेखक का आत्मालाप: सुषमा गुप्ता

दुनिया में सबसे सुंदर क्या है? प्रेम!

प्रेम का सबसे सुंदर रूप क्या है ?यही कि सब से प्रेम करना!

पर प्रेम में सबसे ऊपर क्या है?

मेरी समझ में अपनी आत्मा को समझना, अपनी आत्मा से प्रेम करना अपनी आत्मा के गुण दोष पहचानना।

मनोरमा लेखक की आत्मा है और ‘सुनो मनोरमा‘ लेखक का आत्मालाप।

यह उदास करता है।मुस्कान देता है।सोचने पर मजबूर करता है। किसी-किसी पंक्ति पर इस तरह से ठिठका लेता है कि आप अपने भीतर की यात्रा में प्रवेश कर जाते हैं। कुछ देर भटकते हैं वहीं, फिर मनोरमा आपको खींच लाती है कि रुको अभी मेरे साथ रहो अपनी यात्रा पर थोड़ी देर बाद जाना। मैंने ऐसी एक सुंदर किताब मानव कौल की पढ़ी थी, ‘तुम्हारे बारे में’। यह डायरी शैली में लिखी गई खुद से बातचीत का बहुत सुंदर दस्तावेज है।
"suno-manorama" by dr. ajit singh tomar. published by shwetwarna prakashan
‘सुनो मनोरमा’ भी डायरी शैली में लिखी गयी किताब है, अपनी प्रेयसी, जो खुद की आत्मा ही है, जो पुरुष के भीतर की स्त्री भी है, उससे किया गया बहुत सुंदर वार्तालाप है। मेरी समझ अनुसार मनोरमा हम सबके जीवन में होती हैं। मनोरमा का अर्थ सिर्फ एक सुंदर प्रेमिल स्त्री नहीं है। मनोरमा एक व्यापक बिंब है जो समेटे है, वह सब सुंदर स्त्री पुरुष हैं जो समय-समय पर हमें मिलते रहें, जिन्होंने सुंदर शब्द कहे, जिन्होंने सुंदर एहसास दिए, जिन्होंने सुंदर समय दिया, जिन्होंने कभी-कभी कुछ ना भूलने वाले पाठ भी पढ़ाए, जो थोड़े कड़वे ही थे और ये सब उसके बाद अपना एक छोटा सा हिस्सा हमारे अंदर छोड़कर आगे बढ़ गए।

इन सब छोटे-छोटे हिस्सों से मिलकर हमारी आत्मा निर्मित है जिससे एक वार्तालाप निरंतर चलता रहता है, वही हमारी मनोरमा है।

छोटी-छोटी स्मृतियाँ हैं जो विस्मृत नहीं होती और एक अपने भीतर की छाया है जो उन स्मृतियों से रूप ग्रहण करती है। इस किताब में प्रेम की सुंदर व्याख्या की गई है। ना ऐसे मत समझिए कि प्रेम क्या है यह बताया गया है। लेखक और उसकी मनोरमा के बीच का जो वार्तालाप है उसी में आपको बहुत से जटिल प्रश्नों के सहज समाधान मिल जाएंगे, प्रेम के व्यापक अर्थ मिल जाएंगे।

रिश्तो के उतार-चढ़ाव में परेशान करने वाले सवालों के जवाब तक मिल जाएंगे। बहुत से लोगों की छटपटाहट शायद कुछ कम होगी जो वह अपने निजी रिश्तो में महसूस कर रहे हैं। इस किताब में दर्शन बहुत गहरा है।

पेज नंबर 63 पर:

‘दिल की बस्ती में अधूरे पन के कुछ मोहल्ले हैं’ यह आलेख बेहद कमाल का है‌। एक-एक पंक्ति जैसे दिल को छू कर जाती हुई।

इससे अगले आलेख में भाषा की खूबसूरती देखिए:

‘मेरे अपने वजूद के डर मुझ पर इस कदर तारी है कि मैं ख़यालों की कतरन से किस्सागोई की पतंग उड़ाता हूँ मगर उसकी डोर मेरे हाथ में नहीं है उसे वफ़ा के कारोबारियों ने मुझसे छीन लिया है। मरासिम के ख़लीफाओं की बस्ती का मैं अकेला ग़ैर इल्मदार फकीर हूँ।’

इस किताब की खूबसूरती यह है कि आप इसे कहीं से भी पढ़ सकते हैं।इसमें छोटे-छोटे आलेख हैं जो जीवन दर्शन से,प्रेम से लबरेज़ हैं। यह आलेख आपकी पसंदीदा चाय की चुस्कियों की तरह है जिसे हौले-हौले आप अपने भीतर उतारते हैं।

पंक्तियाँ देखिए:

‘अफसोस’ की शक्ल बदरंग होती है। ये ना आता हुआ अच्छा लगता है ना जाता हुआ‌। दिल धड़कते हुए इतनी आवाज़ करने लगता है कि आपके कान चाह कर भी अनसुना न कर सके तब पता चलता है दिल की बस्ती का आख़िरी पैरोकार भी इल्ज़ाम की तस्दीक करके कहीं आगे निकल गया है

जज़्बात गैरज़रूरी ज़ाया ना हो इस बात का इल्म रखते हुए भी अक्सर गलतफहमी के शिकारे अपनेपन की झील में डूब जाते हैं।’

कोट करने लगी तो शायद आधी से ज़्यादा किताब कोट करनी पड़े इसलिए आप इसे खुद पढ़िए। कुछ आलेख सरल हिंदी में है और कुछ में उर्दू शब्दों की इतना खूबसूरत ब्लेंड है कि आप भाषा की जादूगरी पर ही निसार हो जाएंगे।

और एक बात यह किताब एक सिटिंग में पढ़ने की नहीं है।यह बहुत धीरे-धीरे पढ़ने की, महसूस करने की किताब है।

एक-एक पंक्ति ऐसी है कि लगता है बस कि उसे सहेज लेना चाहिए, जैसे कि यह:

‘यह तीसरे पहर की बारिश है। इसलिए मेरा मन तीन हिस्सों में बँट गया है। एक मेरे पास है एक तुम्हारे पास है और एक धरती की उदासी पर बारिश की मनुहार देख रहा है।’

अहा! है ना बेहद खूबसूरत।

मेरा तो मन कर रहा है कि पता नहीं क्या-क्या लिख दूँ यहाँ पर, यह पढ़िए:

‘मेरे पास ना दशमलव है और ना मेरे पास शून्य है यह दोनों अंक तुमने मुझसे कभी उधार लिए थे मगर आज तक नहीं लौटाए हैं इसलिए मेरा अनुमान अकसर गलत सिद्ध हो जाता है और तुम से दूरी घटती बढ़ती जाती है। फिलहाल बस इतना ही निवेदन करूंगा, अगली मौसमी बारिश से पहले मुझे मेरा दशमलव और शून्य लौटा देना ताकि किसी बेमौसमी बारिश में तुम्हारी भौतिक दूरी का सही से आंकलन करके मैं कुछ सही भविष्यवाणी कर सकूँ।’

और यह भी:

‘सबसे गहरी चोटें छिपाकर रखने के लिए शापित होती हैं। सबसे गहरे मलाल उन्हीं से जुड़े होते हैं जो दिल के बेहद क़रीब होते हैं।’

‘खुश रहा करो। तुम्हारी नसीहत तुम्हें सौंप रहा हूँ। मैं तो यह कलंदरी सीख गया हूँ अब तुम्हारी बारी है।’

ग़ज़ब लिखते हैं अजीत जी। उनके शब्दों से भीतर का कहीं कुछ तेज़ झनझना जाता है।

खैर मुझे लगता है कि मुझे अब पंक्तियों को कोट करना बंद कर देना चाहिए वरना तो यह पोस्ट पता नहीं कितनी लंबी हो जाएगी।

अजीत जी आपको इस सुंदर किताब के लिए बधाई और शुभकामनाएँ।

बाकी मेरा भी यही प्रश्न है

बेमौसमी बारिश तुम्हारे स्लीपर का नंबर क्या है?

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