सुदूर अतीत से वर्तमान तक की यात्रा कराती एक पुस्तक : डी एन एस आनंद

विज्ञान अतीत से आज तक

नदी की धारा के साथ बहना आसान होता है, धारा के सामने मजबूती से खड़ा होना कठिन पर धारा के विपरीत दिशा में तैरने का प्रयास करना तो सदैव दुष्कर होता है। लेकिन कुछ लोग अपनी प्रवृत्तियों के कारण, न सिर्फ धारा के साथ बहने से इन्कार कर देते हैं बल्कि विवेक का अनुसरण करते हुए, बिना बिचलित हुए, सच को सच कहने का साहस बनाए रखते हैं। जी हां, मैं बात कर रहा हूं हाल में प्रकाशित पुस्तक “विज्ञान अतीत से आज तक” के लेखक प्रदीप की। युवा विज्ञान लेखक एवं विज्ञान संचारक प्रदीप की 344 पृष्ठ एवं 399 रूपए कीमत की यह पुस्तक श्वेतवर्णा प्रकाशन से प्रकाशित होकर सामने आई है, जिसकी भूमिका देश के प्रमुख विज्ञान लेखक श्री देवेन्द्र मेवाड़ी ने लिखी है।
अतीत से वर्तमान तक की यात्रा कराती पुस्तक सचमुच पुस्तक अपने नाम को सार्थक करती है तथा पाठक को विज्ञान जगत में सुदूर अतीत से लेकर वर्तमान तक की यात्रा कराती है। अपनी भूमिका में श्री देवेन्द्र मेवाड़ी लिखते हैं – ” हिंदी विज्ञान लेखन में प्रदीप एक बड़ी संभावना हैं जिससे आशा जगती है कि आने वाले समय में हिंदी विज्ञान लेखन की मशाल जलती रहेगी और समाज को विज्ञान के प्रमाणित सच का प्रकाश मिलता रहेगा। ” अपनी इस पुस्तक के बारे में खुद लेखक प्रदीप की राय है कि ‘ विज्ञान अतीत से आज तक’ में अज्ञान के अंधेरे में डूबे दूरस्थ अतीत से लेकर विज्ञान के प्रकाश से जगमगाते वर्तमान के साथ ही निकट भविष्य की वैज्ञानिक संभावनाओं की एक संक्षिप्त चर्चा की गई है।

पुस्तक का विस्तृत दायरा

7 खंडों में विभाजित पुस्तक के प्रथम खंड की शुरुआत ‘ विज्ञान और मानव संस्कृति में ब्रह्मांड ‘ से होती है ,जो क्रमशः ” प्राचीन भारत में वैज्ञानिक सृजन : मिथक और यथार्थ “, ” खोज और खतरे “, ” विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण “, “विज्ञान के नए आयाम “, “मन के सामने सब साधे ” के साथ अंतिम सातवें खंड में ” जिन्होंने विज्ञान की इमारत गढ़ी” तक पहुंचती है। पुस्तक की शुरुआत मानव के लिए सबसे गूढ़ एवं रहस्यमय ब्रह्माण्ड से होती है तथा पाठकों को व्यापक विज्ञान जगत की यात्रा कराती हुई महत्वपूर्ण आधुनिक वैज्ञानिकों के जीवन, उनके जीवन संघर्षों एवं विज्ञान क्षेत्र में उनके योगदान की चर्चा से समाप्त होती है। इस दौरान यह अपनी रोचकता एवं मौलिकता बनाए रखती है। सहज, सरल भाषा शैली तथा तथ्यपरक, तर्कसंगत ढंग से रखी गई बातें पुस्तक को विश्वसनीय एवं पठनीय बनाती हैं।
Main bandooken bo raha by ashok anjum
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास पर बल लेखकीय वक्तव्य में ही लेखक प्रदीप ने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि ” यह वैज्ञानिक क्रांति हमारी दुनिया को बेहद तेजी से बदल रही है पर कुछ पुराने ख्यालात वाले लोग चाहते हैं कि इस बदलाव को रोकें और हम दोबारा पवित्र और पुरानी दुनिया में वापस लौटें परन्तु इतिहास गवाह है कि कुछ थोड़े से संपन्न लोगों को छोड़ कर बाकी लोगों के लिए अतीत इतना खुशनुमा नहीं था। साथ ही वे यह भी कि कहते हैं कि विज्ञान लेखन में यह बात ध्यान में रखना जरूरी है कि प्राचीन और आधुनिक दोनों ही प्रकार की विषय वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाए जिससे समाज के सामने आ रही समस्याएं और चुनौतियां प्रकट हों। और सचमुच लेखक ने इस पुस्तक में इसका निर्वाह कुशलता पूर्वक किया है। इसलिए पुस्तक बेहद पठनीय बन पड़ी है।

डी एन एस आनंद
( पत्रकार एवं विज्ञान संचारक )
महासचिव, साइंस फार सोसायटी झारखंड
संपादक,
वैज्ञानिक चेतना (साइंस वेब पोर्टल), जमशेदपुर, झारखंड

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