ग़ज़ल साहित्य की सबसे कोमल विधा है। लोगों के दिलों से सीधे जुड़कर उनके अंतर्मन की बात कहना इसकी सबसे बड़ी खासियत है। इस लॉकडाउन में हर आम आदमी की तरह ग़ज़लकार भी विचलित ज़रूर हुए, पर शीघ्र ही संभल कर अपने दायित्व के निर्वहन में आगे आ गए।
इस संग्रह में सिर्फ़ कोरोना महामारी की ग़ज़लें भर नहीं है, बल्कि कोरोना को झेलते मनुष्यों के साथ-साथ उनसे उपजे हालात, जैसे बिहारी मजदूरों की घर वापसी, रास्ते की दुश्वारियाँ तथा एक-एक रोटी का महत्व, पर्यावरण में होने वाले बदलाव और मनुष्यों के रहन-सहन में हुए परिवर्तनों को ग़ज़ल का विषय बनाया गया है। समय के सच को अभिव्यक्त करती इन ग़ज़लों में समाजिक विद्रूपता, विसंगतियों का चित्र तो है ही साथ ही सकारात्मक संदेश भी है।
gazal saahity ki sabase komal vidha hai. Logon ke dilon se seedhe judakar unake antarman ki baat kahana isaki sabase badi khaasiyat hai. Is lŏkaDaaun men har aam aadami ki tarah gazalakaar bhi vichalit jroor hue, par sheeghr hi sanbhal kar apane daayitv ke nirvahan men aage aa gae.
Is sangrah men sirf korona mahaamaari ki gjlen bhar naheen hai, balki korona ko jhelate manuSyon ke saath-saath unase upaje haalaat, jaise bihaari majadooron ki ghar vaapasee, raaste ki dushvaariyaan tatha ek-ek roTi ka mahatv, paryaavaraN men hone vaale badalaav aur manuSyon ke rahan-sahan men hue parivartanon ko gjl ka viSay banaaya gaya hai. Samay ke sach ko abhivyakt karati in gjlon men samaajik vidroopataa, visangatiyon ka chitr to hai hi saath hi sakaaraatmak sandesh bhi hai.
A. F. Nazar –
कड़े वक़्त के आँसुओं को हथेली पर सजाने जैसा ही सराहनीय और ऐतिहासिक काम है यह…….आदरणीया डॉ. भावना ,श्वेतवर्णा प्रकाशन और शामिल सभी ग़ज़लकारों को बधाई.
रवि खण्डेलवाल –
#यह_समय_कुछ_खल_रहा_है
ग़ज़ल@लॉकडाउन
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श्वेतवर्णा प्रकाशन Shwetwarna Prakashan की ओर से लॉकडाउन से संबंधित काव्य की दो विधाओं पर दो संकलन निकालने की योजनाओं पर गत वर्ष कार्य प्रारंभ किया गया था l एक नवगीत@लॉकडाउन एवं दूसरा ग़ज़ल@लॉकडाउन l दोनों ही संकलनों के प्रारंभ करने और प्रकाशित होकर आने का समय भी लगभग समान ही रहा है l
काव्य के अंतर्गत हिंदी ग़ज़ल विधा ने जिस प्रकार और जिस तेजी से साहित्य में और पाठक वर्ग में अपनी पैठ बनाई है, ऐसी मिसाल किसी और विधा में दिखाई नहीं देती l
प्रस्तुत संकलन “यह समय कुछ खल रहा है”
– ग़ज़ल@लॉकडाउन ग़ज़ल की सुपरिचित शाइरा डाॅ भावना के द्वारा संपादित किया गया है l
ग़ज़ल संकलन का संपादन कार्य काव्य की अन्य विधाओं से कहीं ज्यादा कठिन है, क्यों कि ग़ज़ल का अपना एक शिल्प और एक विधान है l हिंदी ग़ज़ल में भी कमोबेश उर्दू ग़ज़ल के ही विधान को मान्यता प्राप्त है, जब कि नवगीत के साथ उसका अपना विधान न होने के कारण गीत के विधान के साथ-साथ मुक्त छंद की शिथिलता भी विद्यमान है, जबकि ग़ज़ल में तमाम तरह की बाध्यताएँ विद्यमान हैं l
जैसा कि संकलन के उप शीर्षक से विदित हो रहा है कि संकलन में जो ग़ज़लें समाहित की गई हैं वह लॉकडाउन के दौरान ही लिखी गई हैं l
#प्रस्तुत_संकलन_144_बेहतरीन_कोरोना_कालीन_लॉकडाउन_ग़ज़लों_का_एक_ऐसा_गुलदस्ता_है #जिसे_65_शाइरों_ने_अपने_अपने_रंगों_से_इसको_सजाया_और_संवारा_है l
आजाद भारत में संभवतः यह पहला मौका था जब किसी बीमारी के या कहें कि वायरस के महामारी में तब्दील हो जाने की आशंका के तहत पूरे भारत में लॉकडाउन लगाना पड़ा हो l
लॉकडाउन यानी तालाबंदी जैसे शब्दों को अभी तक हमने कल कारखानों के संदर्भ में ही सुना हुआ था, किंतु इस तरह का लॉकडाउन पूरे देश में लगा दिया जाना किसी अजूबे से कम नहीं था l लॉकडाउन, जनता कर्फ्यू, कोरोना कर्फ्यू, मास्क, सेनेटाइजर, सोशल डिस्टेंसिंग, क्वारंटाइन, आइसोलेशन, पी पी टी किट, आर टी पी सी आर आदि जैसे अप्रचलित शब्द हमारी जिंदगी के रोजमर्रा के शब्दों में शिक्षित से अशिक्षित तक के मध्य व्याप्त हो गये ।
“दो गज दूरी, मास्क है जरूरी” जैसी काव्यात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से हर भारतवासी को कोरोना जैसी विश्वव्यापी महामारी से बचने का मूल मंत्र दिया जाने लगा l
ऐसे में कवि शायर कब चुप बैठने वाला था, उसने भी गीत, ग़ज़ल और कविता के माध्यम से इस दौर में सकारात्मक और नकारात्मक रूप से सृजित और घटित होने वाली घटनाओं और व्यक्ति एवं समूह की मन: और मानसिक स्थिति को अपनी रचनाओं में कैद करना शुरू कर दिया l
जैसा कि मैंने कहा शाइरों ने विशेष रूप से ग़ज़ल और शेर के माध्यम से अपनी अहम भूमिका निभाई l
प्रस्तुत ग़ज़ल संकलन में ऐसी ही सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और मानसिक विद्रूपताओं, विसंगतियों तथा जीवन मूल्यों और आदर्शों में आए बदलावों का जीवंत चित्रण है l
संकलन की संपादक डॉ भावना ने अपने संपादकीय की पहली पंक्ति में ही साहित्य की प्रचलित परिभाषा को कुछ यूँ आगे बढ़ाया है –
#साहित्य_समाज_का_न_केवल_दर्पण_बल्कि_दिशा_निर्देशक_भी_होता_है”
डॉ भावना ने कुल जमा बारह वरिष्ठ शायरों के शेरों को उद्धृत कर संकलन की उपादेयता और उसकी गुणवत्ता को अपने संपादकीय में ध्यानाकर्षित किया है ।
डाॅ भावना के अनुसार “यह संकलन सिर्फ कोरोना की त्रासदी को ही शब्द नहीं देता, बल्कि इससे उपजी तमाम जटिलताओं, विद्रूपताओं को भी अभिव्यक्त करने में पीछे नहीं हटता l”
#शारदा_सुमन द्वारा डिजाइन किया हुआ संकलन का कवर पृष्ठ इतना प्रभावी है कि जिसके बारे में एक उक्ति विशेष “लिफाफा देखकर ख़त का मजमून भांप लेते हैं” से समझा जा सकता है l
प्रस्तुत संकलन में –
डॉ. अंजुम बाराबंकवी, अरविंद अंशुमान, अशोक खरे, ईश्वर करुण, कुमार नयन, KP Anmol , Garima Saxena , बाबा वैद्यनाथ झा, बी आर विप्लवी, डॉ. ब्रह्मजीत गौतम , मंजुला उपाध्याय ‘मंजुल’, ममता किरण, रंजन कुमार झा, रूपम झा, शाहिद मिर्ज़ा शाहिद, Hareram Sameep , Anirudh Sinha , अनिल कुमार सिंह, अभिनव अरुण, Ashok Mizaj Badr , डॉ कुँअर बेचैन, डॉ कृष्ण कुमार प्रजापति, गज़ाला तबस्सुम, ज़हीर कुरैशी, ज्वाला सांध्यपुष्प, डॉ पंकज कर्ण, ब्रज श्रीवास्तव, महेश कटारे सुगम, रंजना सिंह बीहट ‘अंगवाणी’, विज्ञान व्रत , संजीव प्रभाकर, सुदेश कुमार मेहर, सुधीर कुमार प्रोग्रामर, सुशील साहिल, हरिनारायण सिंह हरि, अंजनीकुमार सुमन, Anita Singh , Ashok Anjum , असगर शमीम, उदय ढोली, ए एफ नज़र, एनुल बरौलवी, ओमप्रकाश यती, Kamlesh Bhatt Kamal , केशव शरण, स्व. कैलाश झा’किंकर’, Ganesh Gambhir , ज्ञान प्रकाश पाण्डेय, डी एम मिश्र, Dinesh Prabhat , नज़्म सुभाष, Raghuvinder Yadav , Ramesh Kanwal , रवि खण्डेलवाल, राकेश जोशी, राजेन्द्र वर्मा, रामनाथ बेखबर, लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता, Vashistha Anoop , विकास, शुचि भवि, डॉ सीमा विजयवर्गीय, हरगोविंद मैथिल, हातिम जावेद एवं डॉ भावना की एक से लेकर तीन ग़ज़लों को स्थान प्रदान किया है l
इस संकलन की प्रासंगिकता इस लिए भी बढ़ जाती है कि यह संकलन ऐसे वक़्त आया है जब हम पुन: कोविड-19 की दूसरी लहर का व शिथिल लॉकडाउन का मौत की सुनामी के साथ सामना कर रहे हैं l
डॉ भावना ने मेरी भी तीन ग़ज़लों को संकलन में स्थान प्रदान किया है, एतदर्थ उनका हृदय तल से आभार l