मौन भी अपराध है (Maun Bhi Apradh Hai / Rahul Shivay)

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राहुल शिवाय साधारण मनुष्यों के संघर्ष और प्रतिरोध के गीत लिखने में माहिर हैं, अतएव उनके गीतों की काव्यभाषा इतनी सहज और सुगम है कि साधारण पाठकों को भी इससे एकरूपता हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं होती है। राहुल शिवाय का पूरा ध्यान आज की आर्थिक विषमताओं, सामाजिक अंतर्विरोधों, राजनीतिक असंगतियों और विदू्रपताओं तथा तज्जनित असंतोष, आक्रोश, प्रतिरोध और संघर्ष की आवाज़ बुलंद करने पर केन्द्रित रहा है। फिर भी उनके प्रेम-गीत में स्वस्थ और टटके बिम्बों के जो बेल-बूटे कढ़े हैं, संवेदना की जो धधकती आंच है वे बरबस ही पाठकों की संवेदना से एकरूप हो जाने में सक्षम दिखाई देते हैं।

Rahul Shivay saadhaaraN manuSyon ke sangharS aur pratirodh ke geet likhane men maahir hain, ataev unake geeton ki kaavyabhaaSa itani sahaj aur sugam hai ki saadhaaraN paaThakon ko bhi isase ekaroopata haasil karane men koi dikkat naheen hoti hai. Raahul shivaay ka poora dhyaan aaj ki aarthik viSamataaon, saamaajik antarvirodhon, raajaneetik asangatiyon aur vidoorapataaon tatha tajjanit asantoS, aakrosh, pratirodh aur sangharS ki aavaaz buland karane par kendrit raha hai. Fir bhi unake prem-geet men svasth aur TaTake bimbon ke jo bel-booTe kadhe hain, sanvedana ki jo dhadhakati aanch hai ve barabas hi paaThakon ki sanvedana se ekaroop ho jaane men sakSam dikhaai dete hain.

Author

राहुल शिवाय

Format

Paperback

ISBN

978-93-90135-16-5

Language

Hindi

Pages

144

Publisher

Shwetwarna Prakashan

6 reviews for मौन भी अपराध है (Maun Bhi Apradh Hai / Rahul Shivay)

  1. नीलमेन्दु सागर

    राहुल शिवाय की पुस्तक ‘मौन भी अपराध है’ ५६ गीतों का एक पठनीय एवं विचारणीय संग्रह है। शीर्षक से ही यह तथ्य पूर्णतः ध्वनित हो जाता है कि संगृहीत गीतों का कथ्य प्रतिरोधात्मक एवं युयुत्सात्मक है।निस्संदेह इसमें महाकवि दिनकर के सुचर्चित कथन “जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध” की अनुगूँज सुनाई पड़ती है।’ मौन भी अपराध है ‘के गर्भगृह में विराजमान गीतों तक पहुँचने से पहले चर्चित वरिष्ठ कवि नचिकेता द्वारा विरचित २२पृष्ठीय आलेख परकोटे से सगुजरना पड़ता है। नचिकेता ने सरल-सही ढंग से गीत के उद्गम, इतिहास एवं विकास का उल्लेख करते हुए राहुल शिवाय के इन गीतों को साधारण मनुष्यों के प्रतिरोध और संघर्ष के गीत माना है।परन्तु, उन्होंने राहुल के इन गीतों को ‘गीत’ कहने से परहेज करते हुए एवं आत्मपरक गीत, छायावादी गीत, नवगीत, आधुनिकतावादी गीत, जनगीत आदि गीत-गलियों से गुजरते हुए “समकालीन गीत कहना अधिक समीचीन” माना है।स्वयं राहुल शिवाय की भी यही समझ है।गीत साहित्य की सर्वाधिक प्राचीन एवं सनातन विधा है,यह सब जानते और मानते हैं।यह भी अकाट्य सत्य है कि गीत की प्रकृति नहीं बदलती है, न कभी बदली है और न ही कभी बदलेगी; बदलती हैं केवल उसकी प्रवृत्तियाँ।देश-काल-परिवेशानुसार बदलते हैं केवल उसके विषय,उसके भाव,उसके कथ्य।इस बात को प्रकारांतर से नचिकेता भी स्वीकारते हैं-“जैसे -जैसे मानव का विकास होता गया है वैसे -वैसे गीत की विषयवस्तु और अभिव्यक्ति के तरीकों में भी गुणात्मक तब्दीली आती गई है।”गीत के मौलिक तत्व और प्राकृतिक गुण हैं सहजता लयजता गेयता आनुभूतिक निजता एवं भावप्रवणता, जिनके बिना किसी भी विशेषण (छायावादी,आधुनिकतावादी,जनवादी आदि)से युक्त कोई रचना गीत कहाने की हकदार नहीं हो सकती।प्रसन्नता की बात है कि राहुल शिवाय के कथित समकालीन गीतों में गीत के सनातन तत्व श्लाघ्य सीमा तक उपलब्ध हैं, इसलिए  किसी विशेषण में कैद करके देखने से बेहतर है उन्हें केवल  गीतरूप में देखना।पता नहीं कैसे नचिकेता महोदय को राहुल शिवाय के “इन गीतों में स्वाभाविकता और संगीतात्मक तरलता का अभाव”और बेगूसराय के सहज सत्यशिवसुन्दर स्वभाव में “एक अक्खड़ खुरदुरापन” परिलक्षित होता है!
    नीलमेन्दु सागर २६-०२-२०२१

  2. मोनिका सक्सेना 

    “मौन भी अपराध है” गीत संग्रह में कुल ५६ गीत हैं जो विषय की दृष्टि से विविधता रखते हैं। राहुल जी ने युगीन विसंगतियों को यर्थाथता के साथ अभिव्यक्त किया है। राहुल जी जहाँ समाज में निहित कटुताओं को अपने गीतों के माध्यम से उजागर करते हैं वहीं अन्य को प्रेरित भी करते हैं, कि वे समाज में चल रही बुराइयों ,विसंगतियों को समाप्त करने में अपना योगदान दे।आपके गीतों का भाव पक्ष जितना हृदयस्पर्शी एवं उदात्त भावों से परिपूर्ण है उतना ही सशक्त एवं सुन्दरता को समाहित किए हुए शिल्प पक्ष भी है। सम्पूर्ण गीत संग्रह में अनेक प्रतीक हैं जो नवीनता लिए हुए हैं। राहुल जी के गीत उस ‘समुद्र’ की भाँति हैं जिसमें पाठक ‘हृदय एवं चेतना’ रूपी जहाज में बैठकर ज्ञान रूपी अनेक सीपियों एवं मुक्ताफलों को प्राप्त करके असीम आनंद की प्राप्ति करता है।गीतों की भाषा की बात की जाये तो मेरी दृष्टि से भाषा ऐसी होनी  चाहिए जो लेखक की बात को पाठक एवं श्रोता के हृदय तक पहुँचकर उन्हीं भावों को व्यक्त करे जो लेखक अपनी वाणी से कहना चाहता है।आपके गीतों की भाषा इस कसौटी पर खरी उतरती है। शुभकामनाएँ

  3. प्रभु त्रिवेदी (verified owner)

    मौन भी अपराध है ; संघर्ष और संवेदना के गीत 
    श्री राहुल शिवाय (बेगूसराय, बिहार) युवा रचनाकार हैं। वे अद्भुत प्रतिभा सम्पन्न सृजनकार हैं। उनकी उम्र 27-28 वर्ष है, अब तक 10 से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं| इतनी ही कृतियों का सम्पादन कर चुके हैं | विश्व कविता कोष में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है और अन्य उपलब्धियाँ भी हैं। ‘मौन भी अपराध है’ श्री राहुल के 63 नवगीतों का संग्रह है। बिहार के श्रेष्ठ और ज्येष्ठ साहित्यकार श्री नचिकेताजी ने 22 पृष्ठीय भूमिका लिखकर इस कृति का मान बढ़ाया है। उन्होंने समकालीन गीत कोष का सम्पादन कर साहित्य को विशेष अवदान दिया है। 
    वस्तुतः गीत मनुष्य की आरम्भिक चेतना से जुड़ा समवेत स्वर है। यह सामूहिक सांस्कृतिक धरोहर है। यह हृदय का आर्तनाद और आनंद-गान है। समग्रता में कहें, तो सामाजिक चेतना की प्रभावशाली अभिव्यक्ति है। आज भी मानवीय तीज-त्योहार, व्रत-उपवास, सामाजिक-संस्कार और धार्मिक अनुष्ठान, गीत-गान के सशक्त प्रहरी हैं। गीतों का स्वर आनंद की सृष्टि करता है। ये गान हमारी संवेदना के जनक हैं। संभव है अति आधुनिकतावादी इसे मूल रूप में ग्रहण न करें, लेकिन गीत की प्रभविष्णुता और प्रभावोत्पादकता सर्वविदित है। 1990 के बाद इन नवगीतों में समसामयिक सामाजिक चिंताएँ, बाज़ारवाद, दलित-आदिवासी समस्याएँ, स्त्री-विमर्ष और भूमण्डलीकरण आदि विषयों को स्थान मिलने लगा। विगत तीन दशकों में गीत की शब्दावली भी बदली। अब गीत की भाषा, संवेदना, संरचना, संगठक और उद्देश्य भी समाजोन्मुखी बनते चले गए हैं। इस दृष्टि से श्री राहुल शिवाय एक संभावनाशील और समाज के प्रति प्रतिबद्ध रचनाकार हैं। उनके नवगीत इस बात की तस्दीक करते हैं कि उनमें समाज के अंतिम व्यक्ति के प्रतिरोध को अभिव्यक्त करने की पूर्ण क्षमता है। वे अपने चिंतन में इतिहास से सीखते हैं, वर्तमान को पढ़ते हैं और भविष्य की बुनियाद रखते हैं। आइये, इस कृति के शीर्षक गीत ( एक अंश ) से वर्तमान ( हाथरस बलात् घटना ) को जोड़ते हैं:—-
    ‘सत्य पाँवोें तले है/झूठ पहने ताज झूमे/प्रेम भी अपराध है अब/वासना आज़ाद घूमे/सो रही बदलाव की सब कल्पनाएँ/जान लो यह- मौन भी अपराध है।
    मौन होकर जब सहा है/बल बढ़ा है शोषकों का/कर रहे हो स्वयं पोषण/यातना के पोषकों का/हार को स्वीकार करती यातनाएँ/जान लो यह- मौन भी अपराध है।’
    श्री राहुल के समकालीन गीत-नवगीत में समय की सच्चाई और संवेदना के पंख लगे होते हैं। वे ज़मीनी हक़ीक़त को जानते हैं। उनके पास भाषा का कौशल और चिंतन की गइराई है। ‘कोरोना कालखंड’ में पलायन करते मज़दूरों की पीड़ा को उन्होंने शब्द दिए हैं :—
    ‘नहीं ज़रूरत रही/शहर को मज़दूरों की/अब लौटे हैं गाँव/वहाँ पर क्या पाएँगे/छोड़ गाँव की खेती-बाड़ी/शहर गए थे/दिन भर की मज़दूरी में/दिन ठहर गए थे/सपनों से कैसे/सच्चाई झुठलाएँगे|
    शहरी जीवन के/शहरी अफसाने लेकर/त्योहारों पर आते थे/नज़राने लेकर/ तब क्या थे/ अब क्या हैं/कैसे समझाएँगे/टीस रहे हैं कबसे/उम्मीदों के छाले/पूछ रहे हैं प्रश्न/भूख से रोज़ निवाले/कहाँ आत्मनिर्भर होंगे/कैसे खाएँगे।’
    इसी तरह ‘विज्ञापन कहता है’, ‘शहर स्वप्न का है हत्यारा’ और ‘बेटा घर अब आओ’ जैसे अनेक समकालीन गीतों से सजी यह कृति संग्रहणीय है। श्री राहुल ने सामाजिक बदलाव को भाँप लिया है। वे शब्द-चयन में समकाल परोस रहे हैं। उन्हें देशज, तदभव और आंग्ल-शब्दों से कोई परहेज नहीं है। इसीलिए चैटिंग, डेटिंग, कीपैड आदि के प्रयोग से उन्होंने लोक-सम्पृक्तता बढ़ाई है। कृति के फ्लैप पर अन्य साहित्यकारों की टीप इस तथ्य को प्रमाणित करती है। 145 पृष्ठीय यह कृति, सुंदर आवरण चित्र की होकर, वर्तनी की शुद्धता के साथ प्रकाशित हुई है। भाई श्री राहुल को मेरी आत्मीय स्वस्तिकामनाएँ और शुभाशीष। इति |

  4. अंजना वर्मा

    राहुल जी ! आपने वर्तमान संवेदनहीन  और आत्मकेन्द्रित समाज की  संघर्ष  से मुँह फेरकर अपनी संकीर्ण परिधि में जीने  की प्रवृत्ति को बेनकाब किया है, जिसका उद्देश्य समाज  को जगाना  ही है।  घोर अन्याय  देखकर  जो पाक-साफ बनते हुए  कतरा कर निकल जाते  हैं अपने को निर्दोष  समझते हुए, दरअसल  वे निर्दोष नहीं  हैं।  अपराधी केवल व्याधा ही नहीं  ;  बल्कि  देखकर चुप रह जाने वाला भी है।  सार्थक सृजन के लिए  बधाई! आपका यह गीत ‘अग्रिमान’ में  भी प्रकाशित हुआ  है और इसी नाम  से  आपका गीत – संग्रह भी आया है । आपके  गीतों  में  बुरे समय और समाज  को  सही और सुंदर बनाने की  कोशिश  रहती है। पुरातन  काल से  जन-जन को राह दिखाने वाले कवियों की एक  लंबी  शृंखला  रही है।  आपके गीत भी उसी शृंखला की अगली  कड़ी  तैयार  कर रहे हैं। मानव का मानव से  संबंध सर्वोपरि रहा है  और रहेगा।  साहित्य  में  कोई युग आये या जाये, मनुष्य  और मनुष्यता से जुड़ी  रचनाएँ  सदैव  शीर्ष पर रहेंगी। आपके गीतों में जन की चिंता उन्हें  श्रेष्ठ  बनाती है।

  5. कुमार संभव

    राहुल जी आपका प्रयास प्रसंशनीय है। आप जबरदस्त रचनात्मक कार्य कर रहे है।
    किसी अहिल्या
    का जीवन जो
    उद्धारे वह गीत लिखो ना
    ‘मौन भी अपराध है’ नवगीत संग्रह की ये पंक्ति पढ़कर मुग्ध हो गया।

  6. Sunil Singh

    इस संग्रह को देखकर एक गजब अनुभूति पैदा हुई कि इस छोटी सी उम्र में इन कविताओं के माध्यम से सोच और कल्पना की शिखरतम विन्दु तक पहुँचाना आसान काम नहीं है. पूंजीवाद का यह ऐसा दौर है जिसके बारे में मार्क्स का कहना था कि वह मनुष्य के कोमलतम भावों–प्रेम, दुख और करूणा–तक को खरीद फरोख्त की वस्तु में बदल देगा. फिर राहुल जैसे युवा कवि से आशा है कि ऐसा होने नहीं देंगे. मुझे उम्मीद है कि नये पीढियों के कवियों में राहुल शिवाय से बहुत आशा है.

    आज की कविता सक्रिय रूप से राजनीतिक होगी. इसके बगैर हम अपन समय के नहीं पहचान पायेंगे. आज सब कुछ सत्ता की नीतियों से तय होता है तो इस परे रहकर भी उसके भीतर जाना पड़ेगा.शमशेर के शब्दों में’ओ मध्यमा, क्षमा करना कि मैं तुमसे होकर भी तुमसे परे हूं.’ राहुल शिवाय गैर राजनीतिक होते हुए भी राजनीतिक कविता लिख रहे हैं. आज सभी लोग राजनीतिक कविता ही लिख रहे हैं. इस नये दौर में राहुल शिवाय और इनके जैसे कवि जो लिख रहे हैं उसपर आलोचना नहीं आ रही है. लेकिन हर पीढ़ी अपना आलोचक पैदा करती है. समीक्षा करना होगा क्योंकि न होने पर इतिहास के साथ न्याय नहीं होगा. ये ही कवि कल हमारे प्रतिरोध की संस्कृति के भविष्य हैं और इन्हीं पर सबकुछ निर्भर करता है.
    ‘मौन भी अपराध है’
    श्वेतवर्ण प्रकाशन द्वारा प्रकाशित एवं राहुल शिवाय द्वारा लिखित यह पुस्तक एक गीत संग्रह है जिसमें सरोकार साधारण मनुष्यों के प्रतिरोध और संघर्ष से है. साहित्य का सरोकार भी जनता से होता है. गीत एक सामाजिक क्रिया है.इसमें छप्पन गीत शामिल है. पूरे गीत संग्रह का भाव और विचार इसी शीर्षक से गीत में समाहित है:
    सिसकता संघर्ष, उसकी
    विवशताएँ!
    जान लो यह—
    मौन भी एक अपराध है

    सुबह होते ही जगे तुम
    काम पर निकले फटाफट
    पढ़ रहे अखवार हर दिन
    पर समझ पाये न आहट

    सत्य से पीछा छुड़ाती
    व्यस्तताएँ!
    जान लो यह—
    मौन भी अपराध है
    मौन होना कितना बड़ा अपराध है इसी कविता में वह आगे लिखते हैं

    मौन होकर जब सहा है
    बल बढ़ा है शोषकों का
    कर रहे हो स्वयं पोषण
    यातना क् पोषकों का

    हार को स्वीकार करती
    यातनाएँ!
    जान लो यह–
    मौन भी अपराध है

    कोरोना संकट के कारण आवाम खासकर मजदूरवर्ग के जिन समस्याओं को झेलना पड़ा इसी पीढ़ी के लोगों के लोगों ने देखा है और झेला है. भला एक जनवादी कवि इससे कैसे अछूता रह सकता है? राहुल ने इस गीतसंग्रह में इसे अपना विषय बनाया है. ‘बहुत दिनों के बाद’,’कौन है निरूपाय’,’तब क्या थे,अब क्या हैं’, रोटी से सोशल डिस्टेसिंग’, ‘अंधियारा पथ’ आदि गीत कोरोना काल के प्रवाशी मजदूरों के जीवन से जुड़े प्रश्नों से है. ‘भटक रहे बंजारे’ शीर्षक गीत में वह कहते हैं:

    चिंताओं की
    पगडंडी पर
    भटक रहे बंजारे
    मौजूदा समसामयिक विषयों पर एक अच्छी गीत संग्रह है जिसके द्वारा उठ रही संकटों में झांक सकते है.यह उस पंक्ति के चरितार्थ करती है,”साहित्य राजनीति के आगे चलनेवाली मशाल है.”

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