मंटो अपने दौर के उन चुनिन्दा रचनाकारों में से एक थे जिन्होंने अपने साहित्य को वास्तव में समाज का दर्पण बना दिया था। मंटो का ‘साहित्य-दर्पण’ इतना साफ़ था कि उसमें समाज जस का तस नज़र आता था। उन्होंने समाज की नंगी सच्चाइयों पर सभ्यता का बनावटी नक़ाब डालने का प्रयास कभी नहीं किया। चाहे उनपर अश्लीलता और फूहड़पन के कितने भी आरोप लगे हों लेकिन उन्होंने अपना लिखने का अंदाज़ कभी नहीं बदला।
इस पुस्तक के लिए हमने ‘गुरमुख सिंह की वसीयत’, ‘उल्लू का पट्ठा’, ‘आमिना’, ‘मेरा नाम राधा है’, ‘एक्ट्रेस की आँख’, ‘इज़्ज़त के लिए’, ‘अंजाम बख़ैर’, ‘इश्क़-ए-हक़ीक़ी’, ‘क़र्ज़ की पीते थे’, ‘गोली’, ‘पेशावर से लाहौर तक’ और ‘दीवाना शायर’ का चयन किया है। इन कहानियों को पढ़ कर पाठकों को यह एहसास होगा कि मंटो ने जिस भी विषय को उठाया उसके साथ पूरा न्याय किया है। उनकी कलम न समाज के विकृत मानसिकता को उघाड़ कर रख देने में थरथराई न समाज की वैचारिक नग्नता की व्याख्या करने में शरमाई।
मंटो की चुनिन्दा कहानियों की इस पुस्तक-शृंखला को लाने के पीछे हमारा उद्देश्य यही है कि उन विषयों पर हम खुल कर बेझिझक चर्चा कर सकें जिनकी शुरुआत मंटो ने वर्षों पूर्व कर दी थी। यह पुस्तक शृंखला मंटो के विरासत को आगे बढ़ाने की एक कोशिश है।
हमें उम्मीद है कि जिन विषयों पर हम फुसफुसाहटों में चर्चा करते हैं उनपर खुल कर बात करने के लिए मंटो की कहानियाँ हमें प्रेरित करेंगी। इसी उम्मीद के साथ श्वेतवर्णा प्रकाशन ‘मंटो’ पुस्तक शृंखला अपने पाठकों को समर्पित करता है।
Books
मंटो क्लासिक्स -3 (Manto – 3 / Saadat Hasan Manto)
₹199.00
Category: Books
Tags: कहानी, श्वेतवर्णा क्लासिक
Author | Saadat Hasan Manto |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-93-90135-75-2 |
Language | Hindi |
Pages | 112 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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