ऋषिका ‘मैत्रेयी’ शास्त्र-ज्ञान से संपन्न और लोक-कल्याण की कामना रखनेवाली प्रबुद्ध-स्त्री थीं। शास्त्रों ने उन्हें सांसारिक प्रपंच से ऊपर उठाकर एकमात्र अमृत-तत्त्व की आकांक्षा रखने वाली एक दिव्य साधिका के रूप में देखा है।
कर्म, त्याग और अनासक्ति की भाव-भूमि पर मैत्रेयी का चरित्र एक नया ऋषि-समाज गढ़ता हुआ दिखाई देता है, जिसमें स्त्री-शिक्षा की लौ जलाए रखने की शक्ति के साथ संपूर्ण परिवेश और प्रकृति की भी चिन्ता है। वह मानव-समाज की कल्याण-कामना के साथ आत्म-तत्त्व का भी साक्षात्कार करना चाहती है। सौन्दर्य और करुणा, प्रेम और विराग, आत्म से परमात्म और मृत्यु से अमृत तक की अनथक यात्रा करनेवाली ऋषिका का नाम है ‘मैत्रेयी’!
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