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दोहे के सौ रंग (Dohe Ke Sau Rang / Garima Saxena)

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दोहे के सौ रंग में देश के चुनिंदा सौ दोहाकारों के दोहे संकलित किये गये हैं। प्रत्येक दोहाकार के २१ चुनिंदा दोहों के पूर्व उनके दोहों की प्रकृति, भाव व शिल्प पर संपादक की संक्षिप्त टिप्पणी भी संकलित है।  इस संकलन में दोहे का विस्तृत इतिहास, नियम, होने वाली सामान्य ग़लतियों और प्रकारों पर प्रकाश डाला गया है जो शोध कार्यों और नवोदित लेखकों के लिये सदुपयोगी है।

Dohe Ee Sau Rang mein desh ke chuninda sau dohaakaaron ke dohe sankalit kiye gaye hain. Pratyek dohaakaar ke 21 chuninda dohon ke poorv unake dohon ki prakRiti, bhaav v shilp par sanpaadak ki sankSipt TippaNi bhi sankalit hai.  Is sankalan men dohe ka vistRit itihaas, niyam, hone vaali saamaany glatiyon aur prakaaron par prakaash Daala gaya hai jo shodh kaaryon aur navodit lekhakon ke liye sadupayogi hai.

Author

संपादक: गरिमा सक्सेना

Format

Paperback

ISBN

978-81-9455-908-5

Language

Hindi

Pages

340

Publisher

Shwetwarna Prakashan

8 reviews for दोहे के सौ रंग (Dohe Ke Sau Rang / Garima Saxena)

  1. Prabhu Trivedi

    दोहा छंद के लेकर विगत तीन दशकों में एकाधिकबार सम्वेत संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। चाहे संस्थागत विशेषांक के रूप में हों अथवा किसी साहित्यकार के सम्पादकत्व में हों। लेकिन विगत दिनों श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा युवा कवयित्री गरिमा सक्सेना के सम्पादन में प्रकाशित ‘दोहे के सौ रंग’ कृति अपने आप में अनूठी है। युवा-कवि अमन चाँदपुरी की स्मृति में प्रकाशित यह ग्रंथाकार पुस्तक सौ जीवित दोहाकारों को समेटे हुए है।

    नवगीतकार के रूप में सम्पादक गरिमा सक्सेना की छबि साहित्यिक समाज में बनी है। इधर उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि दोहा उनकी प्रिय विधा है और लय को उन्होंने दोहे से ही साधा है। स्मृतिशेष श्रद्धेय चंद्रसेन विराट कहा करते थे ‘शेर से हिंदी में कोई पंजा लड़ा सकता है, तो वह दोहा ही है।’ यह सभी जानते हैं कि दोहा छंद को मारक, भेदक, व्यंजक होते हुए ‘वामन विराट’ की संज्ञा प्राप्त है। इसकी संक्षिप्तता, बिम्बात्मकता व सुग्राह्यता सर्वविदित है। लेकिन इस छंद का यह दुर्भाग्य भी है कि इसे दो पंक्तियों के कारण अत्यंत सरल मान लिया गया है। जबकि दोहे को मंत्र की तरह साधना होता है। जिसे सध जाता है, फिर सधा हुआ ही निकलता है। इस अर्थ में गरिमा सक्सेना ने श्लाघनीय कार्य किया है। सम्पादकीय में दोहे का इतिहास, पुनरुत्थान और दोहे के विकसित स्वरूप को समाहित कर अशुद्धियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है, जो नितांत आवश्यक है। दोहा लेखन में मात्रा-लिंग और अंत्यानुप्रास-दोष सामान्य बात है। अनेकबार स्थापित दोहाकारों में भी ये दोष पाये गये हैं। यदि थोड़ा-सा परिश्रम किया जाये और अति-लेखन के मोह को त्यागा जाये, तो इन दोषों से बचा जा सकता है। कुशल सम्पादक गरिमा सक्सेना ने मत-भिन्नता के उदाहरण देकर सम्पादकीय दायित्व का निर्वहन भी किया है। प्रत्येक दोहाकार के 21-21 दोहों पर अपनी सारगर्भित संक्षिप्त समीक्षा ने कृति के महत्त्व को और बढ़ा दिया है। यह श्रमसाध्य कार्य उन्हें एक परिपक्व साहित्यकार की श्रेणी में लाकर खड़ा करता है।

    द्वितीय महत्त्वपूर्ण आलेख डाॅ. मधुकर अष्ठानाजी का है, जिसमें उन्होंने जगन्नाथप्रसाद भानु के ‘छंद प्रभाकार’ में दिये गए दोहे के सैद्धांतिक स्वरूप को पुष्ट किया है। विस्तार निरपेक्षता की दृष्टि से मैं सौ दोहाकारों का नमोल्लेख न करते हुए यहाँ इतना ही कहना चाहूँगा कि दोहा पुनः उठ खड़ा हुआ है छांदसिक कविता के पक्ष में और यह सिद्ध करने में लगा है कि भाव के साथ शिल्प का सुंदर समन्वय ही काव्य-रस की वर्षा करता है। इस कृति में संगृहीत समस्त दोहे सामाजिक विषमताओं को अभिव्यक्त करते हुए, दार्शनिक स्तर को स्पर्श करते हुये दिखाई देते हैं। नई पीढ़ी के लिए यह पुस्तक पठनीय और संग्रहणीय है।

    समीक्षक
    -प्रभु त्रिवेदी
    कवि-लेखक,
    अध्यक्ष, म.प्र. लेखक संघ, इंदौर इकाई,
    94250-76996

  2. Jai chakrawarti

    गरिमा ने अपनी उम्र को अब तक जितना जिया है, उसे देखते हुए हिन्दी साहित्य के प्रति उसका अवदान बहुत अधिक है ।
    समूचे देश से खोज खोज कर एक- दो- दस नहीं, पूरे सौ दोहाकारों को उन्होंने जिस मेहनत, लगन और समर्पण के साथ इस किताब में इकट्ठा कर दिया है, वह कोई साधारण बात नहीं है।
    इन सौ रचनाकारों में आधे से अधिक ऐसे नाम हैं जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे।
    गरिमा ने यह काम किया और पूरी ठसक के साथ किया। सौ रचनाकारों के इक्कीस- इक्कीस प्रतिनिधि दोहे उन्होंने बड़े इत्मीनान से, हर तरह से ठोक बजाकर छापे हैं । यह काम उन्होंने ऐसे समय में किया है जब लोग एक एक- दो दो रचनाएं छापने के बदले रचनाकार से पांच पांच – सात सात सौ रुपए एडवांस मांगते हैं। गरिमा ने किसी भी तरह का कोई पैसा किसी से नहीं लिया और किताब प्रकाशित कर दी।
    अपनी सुचिंतित संपादकीय के माध्यम से दोहे के शिल्प और कथ्य पर तो प्रकाश डाला ही है, दोहा लेखन में भाषा के स्तर पर आमतौर पर होने वाली शाब्दिक त्रुटियों पर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है।
    वरिष्ठ नवगीत कवि श्री मधुकर अष्ठाना ने इस संकलन की शुरुआत में दोहों के भेद पर भी जरुरी जानकारी दी है।
    हालांकि इस संकलन के लिए सामग्री जुटाने में बेहद परिश्रम किया है, तथापि कहीं कहीं सावधानी बरतने में उनसे कुछ जल्दबाजी भी हुई है। इतने बड़े कार्य के दृष्टिगत इस तरह की छोटी छोटी बातें हर तरह से इग्नोर किए जाने लायक हैं। तीस सौ चालीस पृष्ठ की यह पुस्तक रचनकारों सहित शोधार्थियों के लिये भी बहुत उपयोगी है। इसे खरीदकर पढ़ा जाना चाहिए।

    जय चक्रवर्ती

  3. Kunwar Udaysingh Anuj

    “दोहे के सौ रंग” उत्तर प्रदेश के दिवंगत होनहार युवा(22 वर्ष) कवि श्री अमन चाँदपुरी को समर्पित है. उनकी प्रतिभा का सम्मान करते हुए, पाठकों को उनकी प्रतिभा से परिचित करवाने के उद्देश्य से उनके 11 दोहे प्रारम्भ में स्मरण /समर्पण के साथ संकलित हैं.
    संग्रह में समकालीन जीवित 100 कवियों के दोहे संगृहीत हैं. प्रत्येक कवि के इक्कीस दोहों को उनके परिचय सहित प्रकाशित किया है. कहा जा सकता है कि संग्रह में कुल 2100 दोहे हैं.
    यह बहुत श्रम साध्य कार्य है. इतने रचनाकारों के दोहों को संगृहीत करना, पुस्तकाकार करना, उनका प्रूफ रीडिंग करना कोई आसान कार्य नहीं है. महत्वपूर्ण बात यह है, कि 100 कवियों के दोहों पर परिचय में उनके कथ्य, शिल्प, संरचना कौशल पर भी संपादक ने सारगर्भित टिप्पणियाँ की हैं. उनका यह श्रम इस संग्रह को अधिक मूल्यवान बना देता है.
    संग्रह की भूमिका में संपादक गरिमा सक्सेना जी ने दोहे के इतिहास के साथ नये दोहाकारों की सुविधा के लिए दोहा लिखने के नियमों पर भी प्रकाश डाला है. दोहा लेखन में होने वाली सामान्य त्रुटियों की ओर भी ध्यान दिलाया है तथा इन त्रुटियों से बचने की सावधानियों से भी परिचय करवाया है.
    संग्रह में दोहा छंद मर्मज्ञ डाॅ. मधुकर अष्ठाना जी का लेख भी सम्मिलित है. उन्होंने हिंदी साहित्य की दोहा परम्परा में प्रमुख कवियों के नामों की चर्चा करते हुए आधुनिक श्रेष्ठ दोहाकारों का नामोल्लेख भी किया है. उन्होंने इस विधा के 23 प्रकार के दोहे भी उदाहरण स्वरूप अपने लेख में सम्मिलित किए हैं ताकि नये दोहाकारों को इन 23 प्रकारों में लघु-गुरु मात्राओं की संख्या का ज्ञान भी हो सके.
    दोहों की रागात्मकता,अलंकारिकता, माधुर्य, लालित्य,कोमलता, गेयता, प्रभावोत्पादकता, बिम्ब विधान,प्रतीक योजना पर प्रत्येक कवि के दोहों के प्रस्तुतिकरण में सम्पादक गरिमा जी की टिप्पणियों का कौशल अनुपम है।
    100 कवियों के सृजन में कथ्य, शिल्प व कहन का वैविध्य पाठक को आनंदित करता है। युगीन बोध के संवाहक ये दोहे रचनाकारों के अनुभवों की व्यापकता, प्रौढ़ता, चिंतन की गहराई, भाव तीक्ष्णता, मानवीयता की पक्षधरता, आध्यात्मिकता, प्रकृति प्रेम के हरबोले हैं।
    शब्द कौशल,भाषिक प्रांजलता, नव्यता, बोधगम्यता इन दोहों को विशिष्टता प्रदान करते हैं।
    मुखपृष्ठ और छपाई सुंदर है। वर्तनी की न्यूनतम त्रुटियाँ हैं। संग्रह पठनीय। संपादक का परिश्रम प्रशंसनीय।

    *कुँअर उदयसिंह अनुज

  4. Awanish Tripathi

    गरिमा सक्सेना द्वारा विस्तृत सम्पादकीय और हर दोहाकार पर सटीक टिप्पणी के साथ ‘दोहे के सौ रंग’ पुस्तक का सम्पादन किया गया है। लगभग संकलन पढ़ चुका हूँ। इस बिना पर कह सकता हूँ कि यह संकलन उन लोगों को जवाब है जो नवोदितों पर भ्रम पालकर बैठते हैं। जबकि उम्र का प्रतिभा से कोई सम्बन्ध नहीं।सम्पादकत्व का कठिन दायित्व निर्वहन कर ले जाना और उँगली उठाने का अवसर न देना यह गरिमा की प्रतिभा और कार्यक्षमता को ही दर्शाता है। सम्मिलित दोहे अपनी पूर्णता के साथ हैं।

    -अवनीश त्रिपाठी

  5. रवि खण्डेलवाल

    दोहे के सौ रंग संग्रह की खास बात ही यही है कि यह युवा द्वारा संपादित, युवा द्वारा प्रकाशित एवं स्मृतिशेष युवा कवि अमन चाँद पुरी को समर्पित है l
    अमन चाँदपुरी एक ऐसा युवा कवि था जिसके अंदर कविता को नई ऊंचाइयाँ प्रदान करने की अपार संभावनाएं मौजूद थीं l अमन के अंदर अपने भावों को नये शब्दों, प्रतीकों, बिंबों, मुहावरों आदि के माध्यम से गीत, ग़ज़ल और दोहों में अभिव्यक्त करने की अपनी एक शैली के माध्यम से अपार क्षमता थी l नियति ने असमय ही उसे हमसे छीन कर निश्चित ही काव्य को अपार क्षति पहुंचाई है l
    ऐसे युवा कवि को यह संग्रह समर्पित कर निश्चित ही आज की युवा पीढ़ी ने साहित्य जगत का गौरव बढ़ाया है l
    गरिमा सक्सेना के अंतर में दोहों के प्रति लगाव यूं ही नहीं जागृत हुआ l उन्होंने दोहों को पढा, जाना और समझा, तब जाकर यह समझ में आया कि कम शब्दों में गहन भाव बोध को अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए इससे बेहतरीन और कोई छंद हो ही नहीं सकता इसलिए उन्होंने पहले स्वयं दोहे लिखकर उसमें पारंगत ही नहीं हुईं अपितु इसमें नवीनता लाने के लिए अपनी बुद्धि कौशल का परिचय भी दिया l
    कबीर से चली आ रही दोहा छंद की यह परंपरा हमारे समकालीन कवियों में किस हद तक अपनी पैठ बनाए हुए है, यह संग्रह इस बात का प्रमाण है l
    गरिमा सक्सेना द्वारा संपादित यह दोहा संग्रह इस मायने में भी सर्वथा अलग पहचान बनाने में कामयाब हुआ है कि गरिमा सक्सेना ने प्रत्येक दोहाकार के दोहों को न केवल गहनता से पढा ही है अपितु भाषा, कथ्य और शैली के आधार पर रचनाकार की अपनी-अपनी उड़ान का आकाश भी तलाशा है l
    गरिमा सक्सेना ने अपने संपादकीय में “दोहा छंद का प्राचीन, मध्यकालीन और रीतिकालीन इतिहास” पर दृष्टिपात किया है तो वहीं “आधुनिक काल और दोहा का पुनरुत्थान” पर भी अपनी दृष्टि डाली है l
    यही नहीं ”आधुनिक दोहा और उसकी परिभाषा” के अंतर्गत अशोक अंजुम, हरेराम समीप व राहुल शिवाय की टिप्पणियों को उद्धृत कर उसे प्रामाणिकता प्रदान की है l “इस संकलन के लिए” शीर्षक के अंतर्गत गरिमा का यह विश्लेषण बहुत महत्वपूर्ण है कि “…आजकल दोहाकार दोहों में केवल नीति, भक्ति, उपदेश व श्रृंगार ही अभिव्यक्त नहीं कर रहे अपितु राजनैतिक सामाजिक विसंगतियों, विद्रूपताओं, उत्तर आधुनिकता, नैतिक मूल्यों में पतन आदि समकालीन विषयों को नयी कहन के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं जो दोहे को प्रासंगिक व लोकप्रिय अवश्य बना रहा है l …”
    गरिमा सक्सेना ने नवोदित दोहाकारों या इसमें रुचि रखने एवं लिखने की इच्छा रखने वालों के लिए “दोहा छंद एक परिचय” शीर्षक से एक महत्वपूर्ण आलेख भी प्रस्तुत किया है l
    डॉ मधुकर अष्ठाना का भी एक आलेख “लोकप्रिय दोहा छंद” दोहा के जानकार विद्वानों के लिए भी बेहद रोचक, पठनीय व ज्ञान प्रदान करने वाला है l

    #रवि खण्डेलवाल

  6. डॉ. मंजु लता श्रीवास्तव

    ‘दोहे के सौ रंग’कवयित्री ‘गरिमा सक्सेना’ द्वारा संपादित श्रेष्ठ एवं समृद्ध ‘दोहाकार शतक’ है। इसमें विभिन्न वरिष्ठ दोहाकारों के विविध विषयों से संबंधित दोहे संकलित हैं।प्रारंभ में श्रीमती गरिमा सक्सेना ने संपादकीय में दोहे की परिभाषा एवं उसके इतिहास पर प्रकाश डालते हुए आधुनिक दोहों में किस प्रकार परिवर्तन हुआ है- इसका परिचय दिया है। साथ ही ‘दोहा छंद एक परिचय’ नामक आलेख के द्वारा दोहा विधा के नियम, उस में आने वाली त्रुटियांँ एवं साहित्यकारों के बीच में इस विधा को लेकर जो मतभिन्नता है उस पर भी विचार किया है।
    प्रत्येक कवि के विषय में पूर्व परिचय देकर संपादिका ने कवि के दोहों को समझने में एक सुगम मार्ग प्रशस्त किया है। सौ दोहाकारों को एक स्थान पर संकलित कर विदुषी सम्पादक व श्रेष्ठ कवयित्री गरिमा सक्सेना ने साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसके लिए वह बधाई की पात्र हैं।

  7. Naresh Shandilya

    प्रसिद्ध कवयित्री, गीतकार, दोहाकार गरिम
    सक्सेना के कुशल संपादन में आये दोहा संकलन ‘दोहे के सौ रंग’ में देशभर के सुपरिचित दोहाकारों को शुमार किया गया है।
    पुस्तक में सभी 100 दोहाकारों के 21-21 दोहे, परिचय और उनके लेखन पर संक्षिप्त किन्तु महत्वपूर्ण संपादकीय टिप्पणी भी है। यह एक महत्वपूर्ण संकलन है जिसे पढ़ना चाहिए।

  8. त्रिलोक सिंह ठकुरेला

    दोहे के सौ रंग

    दोहा साहित्य की उन प्राचीन विधाओं में से एक है, जो लोक के कंठ में विराजती हैं । समय की धारा से गुजरते हुए दोहा सदैव प्रासंगिक रहा है ।
    दोहा को जन जन तक पहुँचाने में अनेक साहित्यकारों एवं सम्पादकों का उल्लेखनीय योगदान रहा है । इसी क्रम में गरिमा सक्सेना द्वारा सम्पादित ‘दोहे के सौ रंग’ एक उत्कृष्ट कृति है । श्वेतवर्णा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में सौ दोहाकारों के प्रभावशाली दोहे संकलित हैं । मेरा विश्वास है कि यह कृति दोहा की ऐतिहासिक यात्रा में एक मील का पत्थर है, जो पाठकों, शोधार्थियों सहित सम्पूर्ण साहित्य जगत के लिए उपयोगी सिद्ध होगी ।

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