मैं चन्दन हूँ (Main Chandan Hoon / Edi. Shubham Shriwastava ‘Om’)

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गुलाब सिंह हिन्दी नवगीत के उन स्वर्णाक्षरों में से हैं जो संस्थान कहे जाने की शर्त पूरी करते हैं। देशज शब्द प्रयोग एवं अछूते-टटके बिम्बों के माध्यम से ग्राम्य जीवन की समग्रता को उकेरते उनके नवगीतों की आकर्षण शक्ति का विविध कालखण्डों में अनेकानेक रचनाकारों ने अनुकरण किया है। गुलाब सिंह अपने प्रति बन गयी धारणाओं को बार-बार तोड़ते हैं। गाँव एवं गँवई चेतना उनके गीतों का मूल प्रतिपाद्य है लेकिन वह गाँव-घर-सीवान तक ही सीमित नहीं रहते। उनके नवगीतों में राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय विषयों पर लोकजीवन पर पड़ते उनके प्रभावों के विश्लेषण के साथ व्यापक विमर्श मिलता है।
गीत रचना के अतिरिक्त वैचारिकी-सैद्धांतिकी के क्षेत्र में भी वह खासा हस्तक्षेप रखते हैं। नवगीत के विविध पक्षों पर उनकी चिन्तन दृष्टि से निसृत आलेख विधागत परम्परा एवं प्रगति का परिचय कराने के साथ-साथ नयी काव्य-आवश्यकताओं के प्रति भी संकेत करते हैं। उत्तर आधुनिकता के इस घटाटोप में वह शब्दों के आकाशदीप से मनुष्यता का पथ आलोकित करते हैं। आपाधापी भरा जीवन और समकाल की चुनौतियाँ जिस प्रकार भी गीत के शिल्प में अट सके इसी सदाशय से वह गायन के स्थान पर पाठ को, तुकों के निर्वाह की जगह कथ्य को प्राथमिकता देते हैं।

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