अपने आस-पास की विसंगतियों एवं विद्रूपताओं की पड़ताल को गहरी अर्थवत्ता एवं सूक्ष्म अंतर्दृष्टि के साथ कुंडलिया छंद में पिरोकर प्रस्तुत करना श्री हरिओम श्रीवास्तव जी के काव्य का सहज वैशिष्ट्य है जो उन्हें कुंडलिया छंद के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में स्थापित करता है।
– डॉ. बिपिन पाण्डेय
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