कुछ वरक़ मोड़े हुए (Kuchh Warak Mode Huye / Dr. Krishna Kumar ‘Bedil’)

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जब हम ग़ज़ल के परिवेश पर चर्चा करते हैं तो एक नाम बड़े सम्मान के साथ प्रथम पंक्ति में हमें दिखाई देता है वह है आदरणीय कृष्ण कुमार ‘बेदिल’ साहब का। ग़ज़ल की साज-सज्जा में बेदिल साहब की नज़र ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बात भी वो आसान अल्फ़ाज़ में इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं कि पाठक अशआर पर सोचने को मजबूर हो जाता है। अपना 80वाँ जन्मदिवस मनाने वाले बेदिल साहब लगभग अर्ध शताब्दी से अधिक समय से शायरी के सफ़र में हैं।
इनकी ग़ज़लों में अनुभव का आधार और संवेदना की गहराई दोनों है। शिल्प और शिष्टाचार की दृष्टि से इनकी ग़ज़लों का जवाब नहीं! गज़ल के लिए मीठी और घुली हुई ज़ुबान जान है और यह इनकी ग़ज़लों में मौजूद है। इनकी ग़ज़लों में सादगी और सफाई है और अशआर सीधे दिल में उतरते हैं।

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