कोकिला कुल (Kokila Kul / Sonroopa Vishal)

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सर्व विदित है कि कवि सम्मेलनों को सदा कवयित्रियों की गरिमा, ओज, विद्वता, शालीनता, प्रभावशाली प्रस्तुति, कवित्त, प्रज्ञा, ज्ञान, मेधा, तेजस्विता ने समृद्ध किया है।
उनकी सम्मानित उपस्थिति से कवि सम्मेलन का इतिहास अलंकृत और समृद्ध हुआ है। इस फ्रेम में कुछ नाम तो अधिकतर स्मृत किये जाते हैं लेकिन अनेक नाम ऐसे भी थे जो कुछ तो परिस्थितिवश, कुछ प्रचार-प्रसार के अल्प साधन वश, कुछ स्वयं के प्रति उदासीन रहने के कारण बहुत चर्चित नहीं हो पाए।
हिन्दी साहित्य और मंच की तत्कालीन एकरूपता के स्वर्णिम समय को मद्देनज़र रखते हुए जब मैंने ‘हिन्दी कवि सम्मेलनों में कवयित्रियों की गौरवशाली परम्परा’ के अंतर्गत कवयित्रियों पर आलेख लिखने शुरु किये तो कुछ ही नाम मेरे ज़हन में थे।ये शृंखला मैंने फेसबुक पर शुरू की थी। हर शुक्रवार एक कवयित्री का परिचय और उनका एक गीत गाकर मैं पोस्ट करती। पाठकों और श्रोताओं को ये शृंखला पसंद आने लगी। इधर मेरे परिचय में कई ऐसी अच्छी कवयित्रियाँ आयीं जो कवि सम्मेलनों में जाने की इच्छा रखतीं और लिखती भी अच्छा थीं। मैं उनके समक्ष भी इन अनुकरणीय व्यक्तित्वों को प्रस्तुत करना चाहती थी। सिलसिला चल पड़ा। धीरे-धीरे आलेख तैयार होने लगे।
इन रचनाकारों को जब पढ़ना और जानना शुरू किया तो ज्ञात हुआ कि अधिकतर कवयित्रियों ने विषम परिस्थितियों में भी अपने भीतर के साहित्यिक उजाले को क्षीण नहीं होने दिया। तत्कालीन समय में स्त्रियों का अपने अस्तित्व को एक पहचान देना आज के बनिस्बत बहुत कठिन था। प्रणम्य है उनका संघर्ष। आप जब पढ़ेंगे तो जानेंगे उनके जीवन की दुरूहता को।
अब मैं खोज करने लगी थी, साहित्य और मंच से जुड़े लोगों से पूछने लगी थी ऐसे ही और नाम। मुझे प्रसन्नता हुई जब कई लोगों ने न केवल कई कवयित्रियों के नाम सुझाए बल्कि उनका साहित्य, उनसे संबंधित जानकारी मुझे उपलब्ध करवाई। इनमें अधिकतर ऐसे नाम थे जिनसे बहुत कम लोग परिचित थे। हर नाम मुझे संतोष देता कि अच्छा हुआ मैंने ये कार्य शुरू किया वरना कैसे जान पाती ऐसी विलक्षण कवयित्रिओं को। अपनी पूर्वजों को। अपनी राह प्रदर्शकों को।

Author

सोनरूपा विशाल

Format

Hardcover

ISBN

978-93-95432-17-7

Language

Hindi

Pages

128

Publisher

Shwetwarna Prakashan

9 reviews for कोकिला कुल (Kokila Kul / Sonroopa Vishal)

  1. डॉ. विभा माधवी

    कोकिला कुल के कवर पेज को देखकर, इस पुस्तक को पढ़ने की इच्छा हुई। जितना सोचा था उसके आस-पास ही पाया। काव्य-कोकिलाओं की कुछ और प्रतिनिधि रचनाएँ पढ़ने को मिलतीं तो पुस्तक में चार चाँद लग जाते। आगे की कड़ियों में ऐसा होगा, उम्मीद करती हूँ। पुस्तक में सम्पादक का सम्पर्क सूत्र भी अवश्य होना चाहिए था।

  2. डॉ. अश्विनी

    कोकिला कुल एक अद्वितीय प्रयास है। महादेवी और सुभद्रा कुमारी चौहान के अतिरिक्त न जाने कितनी कवयित्रियों ने हिन्दी के विकास में योगदान दिया है, यह उसकी झलक भर है। मैं इसे संपूर्ण नहीं कहता लेकिन श्वेतवर्णा प्रकाशन और सोनरूपा जी का यह प्रयास निशि में चंद्रमा की आभा सदृश ही दैदीप्यमान है। इस महती कार्य के लिए अशेष बधाइयाँ।

  3. डॉ. अश्विनी

    कोकिला कुल एक अद्वितीय प्रयास है। महादेवी और सुभद्रा कुमारी चौहान के अतिरिक्त न जाने कितनी कवयित्रियों ने हिन्दी के विकास में योगदान दिया है, यह उसकी झलक भर है। मैं इसे संपूर्ण नहीं कहता लेकिन श्वेतवर्णा प्रकाशन और सोनरूपा जी का यह प्रयास निशि में चंद्रमा की आभा सदृश ही दैदीप्यमान है। इस महती कार्य के लिए अशेष बधाइयाँ।

  4. विनय प्रताप सिंह

    ” कोकिला कुल ”
    कल जन्मदिन के अवसर पर मुझे एक बहुत सुंदर उपहार मिला। श्वेतवर्णा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रसिद्ध कवयित्री एवं लेखिका आदरणीया डॉ सोनरूपा विशाल जी की पुस्तक ‘कोकिला कुल’ प्राप्त हुई । यह पुस्तक बाहर से देखने में जितनी सुंदर है उतनी ही सुंदर और उत्कृष्ट रचनाएं इस पुस्तक में है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक साहित्य जगत में अपना विशेष स्थान प्राप्त करेगी। इस पुस्तक के लिए पाठक वर्ग एवं साहित्य जगत सदैव डॉ सोनरूपा विशाल जी का आभारी रहेगा।

  5. दिनेश प्रभात

    बड़ा काम, अद्भुत काम, ऐतिहासिक काम, अविस्मरणीय काम, पूरे राष्ट्र में करतल ध्वनि के बीच सराहा जाने वाला काम.
    एक डाल पर बैठा दिया है आपने सारी काव्य व कण्ठ कोकिलाओं को.

  6. आरती वर्मा

    कोकिला कुल एक यादगार काम है। आज ही नहीं भविष्य की निधि है। श्वेतवर्णा प्रकाशन सचमुच पूरे मन से किताब प्रकाशित करते हैं कहीं कोई कमी नहीं रहती है। बधाई

  7. डॉ. नीरज कुमार सिन्हा

    फ़ेसबुक पर कवर पृष्ठ देखकर ही पुस्तक पढ़ने की इच्छा जागृत हुई। एक श्रेष्ठ और संग्रहनीय पुस्तक…

  8. अविनाश भारती

    हिन्दी साहित्य की जानी मानी कवयित्री सोनरूपा विशाल की पुस्तक ‘कोकिला कुल’ को पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ | हिन्दी साहित्य में अपने गीतों तथा कविताओं से मधुर कलरव करती हुई सुप्रसिध्द तथा गुमनामी में ही साहित्य सेवा करती हुई कई कवियित्रीयों को इस पुस्तक में सम्मिलित किया गया है | समस्त कवयित्रियों का यह मेल शीर्षक को सार्थकता तथा सटीकता प्रदान करता है | इस पुस्तक में सोनरूपा जी ने प्रत्येक कवयित्री का संक्षेप में जीवन परिचय दिया है, साथ ही उनकी एक बेहतरीन काव्य रचना को भी पुस्तक का अंग बनाया है | ये रचनाएं पाठकों को रचयिता की भाव सृष्टी समझाने में बहुत सहायता करती हैं | हिन्दी साहित्य की 28 उम्दा कवयित्रियों को एक ही पुस्तक में पढ़ना पाठकों के लिए निश्चित ही ‘गागर में सागर’ का – सा अनुभव होगा |

  9. नरेन्द्र भगत, मदुरई

    कोकिला कुल वाचिक परंपरा की कवयित्रियों का हिंदी साहित्य में योगदान का लेखा जोखा है। यहाँ कूक है… समय और मंच की कर्कशता के बीच। सफेद-स्याह सब पारदर्शी है। प्रकाशक की मेहनत दिखाई देती है।

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