काग़ज़ की देहरी पर (Kagaz Ki Dehri Par / Ravi Khandelwal)

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‘काग़ज़ की देहरी पर’ रवि खण्डेलवाल जी का पहला नवगीत संग्रह भले ही है लेकिन हिंदी नवगीत के लिए उनका नाम नया नहीं है। पिछले ४० वर्षों से वे निरंतर नवगीत लिख रहे हैं। समय के साथ उनकी रचनाओं में नवगीत के आमूल परिवर्तनों को महसूस किया जा सकता है। गीत से नवगीत की यात्रा करते हुए वे स्वयं मानते हैं- ‘मैंने नवगीत को जितना पढ़ा, समझा और जाना है, उस आधार पर मेरी नज़र में नवगीत-गीत में नवता के सिद्धांत को प्रतिपादित कर वर्तमान परिदृश्य एवं परिवेश में समाहित भाषा के माध्यम से, नवीन प्रतीकों व बिम्बों के साथ, समकालीन कथ्य के तदनरूप शिल्प में लयात्मकता और गेयता को साधते हुए सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक सरोकारों में व्याप्त विषमता, विद्रूपता, संवेदनहीनता, विसंगति, पाखंड और विडंबना, छल-छद्म, बाज़ारवाद आदि के साथ ही प्रकृति को मानव जनित क्रिया कलापों सदृश्य कर उनकी काव्यात्मक अभिव्यक्ति प्रदान करना ही नवगीत सृजन है।’

Pages

128

Author

रवि खण्डेलवाल

Format

Paperback

ISBN

978-81-970378-9-4

Language

Hindi

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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