हिन्दी ग़ज़ल का शिल्प और सौंदर्य (Hindi Gazal Ka Shilp Aur Saundrya / Rajendra Verma)

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हिन्दी में आज खूब ग़ज़लें लिखी जा रही हैं और पत्र पत्रिकाओं में उन्हें स्थान भी मिल रहा है, लेकिन इन ग़ज़लों में क्या कमी है और किस प्रकार के दोष हैं, इसका ज्ञान न तो ग़ज़लकार को होता है और न ही पत्रिका के सम्पादक को। परिणाम यह होता है कि पाठक अच्छी ग़ज़लों से वंचित रह जाते हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए यह पुस्तक बहुत कारगर प्रतीत होती है।

पुस्तक सात अध्यायों में विभक्त है। पहले अध्याय में ग़ज़ल का उद्भव, विकास, विरासत, विस्तार, उसकी पहचान और उसका वर्तमान स्वरूप वर्णित है, तो दूसरे अध्याय में ग़ज़ल के शिल्प के अंतर्गत शेर, बहर, अरकान पर प्रकाश डाला गया है। अगले अध्याय में हिंदी ग़ज़ल के सौंदर्य को स्पष्ट किया गया है, जिसमें काव्यगत सौन्दर्य से लेकर कथ्यगत सौंदर्य, भाषिक सौंदर्य, शिल्पगत सौंदर्य आदि को सूक्ष्मता से सोदाहरण विश्लेषित किया गया है। चौथे अध्याय में हिंदी ग़ज़ल के वर्तमान परिदृश्य की झलक है, तो पाँचवे अध्याय में हिंदी ग़ज़ल के विकास में आ रही चुनौतियाँ को पेश किया गया है। छठे अध्याय में हिंदी ग़ज़ल की संभावनाओं की तलाश की गयी है और अंतिम अध्याय में हिंदी ग़ज़ल की आलोचना पर यथेष्ट प्रकाश डाला गया है और समकालीन कविता में ग़ज़ल के समावेश को लेकर आलोचकों की प्रवृत्ति पर सवाल भी उठाया गया है।

निस्संदेह यह पुस्तक ग़ज़लकारों, उसके अध्येताओं और शोधार्थियों के लिए बहुत उपयोगी है। प्रस्तुति का ढंग तो निराला और रोचक है ही।

Author

राजेन्द्र वर्मा

Format

Paperback

ISBN

978-93-92617-11-9

Language

Hindi

Pages

234

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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