इस कथा में मुख्य पाँच स्त्री पात्र हैं जिनकी अपनी दुनिया और अपनी समस्याएँ हैं। कुछ पात्र कम देर के लिए मंच पर आते हैं। मुख्य बात है जीवन के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण और एक दूसरे के प्रति लगाव जिसे इन पंक्तियों का लेखक मानुष भाव मानता है। मनुष्य पर विश्वास करने की आस्था को वह तरजीह देता है। इन मानुष पात्रों में परस्पर सहयोग की भावना मिलती है। इस तरह इस ‘कैक्टस लेन’ में काँटों पर नहीं फूलों पर नज़र जा टिकती है।
भारत की स्वतंत्रता के बाद अलग-अलग जगहों से आए कुल जमा छह लोग अपनी जमीनें खरीदकर अपनी-अपनी कोठियाँ बनाते हैं। यह लेन हिन्दुस्तान के छोटे संस्करण की तरह है जिसका आधार है परिवार स्त्री और पुरुष का मन, उसका टूटना-बिखरना और एकात्म भाव से मिलना। प्रेम इसकी आंतरिक शक्ति है, पारस्परिकता इसका संबल है। यहाँ मन से बड़ा कोई नायक या कोई खलनायक नहीं है। इसमें कांटों की चुभन है तो फूलों की रंगीनी भी।
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Author | Mahendra Madhukar |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-93-95432-61-0 |
Pages | 208 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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