‘कुंडलिया’ छंद विधा की एक सरल और सरस विधा है जो दोहा और रोला छंद के संयोग से बनती है। छंदकारों में गिरधर कविराय और बाबा दीनदयाल गिरि दो ऐसे नीतिकार कवि हैं, जिन्होंने कुंडलियाँ छंद को अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया। वर्तमान समय में कुंडलियाँ छंद विधा का प्रचलन कुछ कम हो गया है किन्तु छंद लिखने वाले वर्तमान छंदकार इस विधा को निरंतर आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। इसी तारतम्य में लक्ष्मी सेंगर ‘रश्मि’ जी का यह कुण्डलिया-संग्रह आपके सामने है जो वर्तमान सन्दर्भों को इस छंद के माध्यम से अभिव्यक्त कर रहा है।
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