यती साहब की ग़ज़लों की बुनावट कसी और घनी है। इनका अपना एक डिक्शन है। इनके शब्दों का चयन काफ़ी आम होता है। इनके शब्द चयन में
कहीं भी अरबी-फ़ारसी का लालच नज़र नहीं आता। इनका चुनाव आम जनता का चुनाव होता है। अनुभव की मद्धिम आँच इनकी फ़िक्र के साथ मिलकर जो
मानीखेज़ मंज़र तैयार करती है वो चित्र की तरह आँखों के सामने नाचने ही नहीं
लगता बल्कि सर चढ़कर बोलने भी लगता है, इनकी शायरी में नारों का आक्रोश नहीं होता बल्कि विचारों का सुलझाव होता है। इनकी शायरी में एक आन्दोलन नज़र आता है। इनकी भाषा में मंचों की चाटुकारिता नहीं है।
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ओमप्रकाश यती की प्रतिनिधि ग़ज़लें ( Om Prakash Yati Ki Pratinidhi Gazale/Vinay Kumar Shukl )
₹249.00
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