यश मालवीय की ग़ज़लों की भाषा उनकी गीत-भाषा की तरह सहज और अकृत्रिम है। इन ग़ज़लों के शेरों में प्रयुक्त परिवेशगत प्रतीक व पौराणिक मिथक कथ्य के सम्प्रेषण को सुग्राह्य बनाते हैं। इसीलिये ये मिथक आम आदमी के दिल पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं-राम, कौशल्या आदि के प्रयोगों ने समकालीन कथ्य को और अर्थवान बनाया है। वास्तव में नए-नए प्रतीकों का प्रयोग हिन्दी ग़ज़ल की परम्परा रही है। यश जी की ग़ज़लों में भी इनका सुन्दर संयोजन हिन्दी ग़ज़ल को और नये संस्कार प्रदान करता है। इन ग़ज़लों में यश मालवीय अपने शेर के कथ्य को व्यापकता देते हुए, जीवन के गहरे अन्तर्विरोधों को विषय बनाते हैं।
संग्रह की ग़ज़लें गीत की संवेदना-भूमि पर ग़ज़ल की नयी फ़स्ल बनकर आई हैं। निस्संदेह ये नये और तीक्ष्ण स्वर की ग़ज़लें हैं। ‘अनमने राम’ की इन ग़ज़लों में विद्रूप होते अपने समय की ऊहापोह के मार्मिक शब्द-चित्र जब सामने आते हैं, तो पाठक ठिठक कर सोचने पर विवश हो जाते हैं। यही नहीं, ग़ज़लों के ये शेर भी उनकी संवेदना, सोच और सरोकारों का वही परिचय देते चलते हैं, जो उन्हें पहले से ही हिन्दी का श्रेष्ठ गीत-ऋषि बनाते हैं।
Author | यश मालवीय |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-81-983152-3-6 |
Language | Hindi |
Pages | 152 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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