दुष्यंत के बाद तो जैसे ग़ज़ल लिखने वालों की बाढ़-सी आ गई। भले दुष्यंत के अति सफल होने की वज़ह उनकी वक़्त की नब्ज़ पर गहरी पकड़ रही हो पर, ज़्यादातर रचनाकार इसे न समझते हुए ऐन-केन-प्रकारेण ग़ज़ल लेखन को सफलता का मूल मंत्र समझने लगे। रातों-रात प्रसिद्धि के शिखर पर जाने का सपना आँखों में लिए न जाने कितने ग़ज़लकार ग़ज़ल लेखन में सक्रिय हैं, कहना मुश्किल है। पर, ऐसा भी नहीं है कि दुष्यंत के बाद के ग़ज़लकारों ने नया कुछ नहीं जोड़ा है। अदम गोंडवी दुष्यंत के बाद सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग़ज़लकारों में से एक रहे हैं। इनकी ग़ज़लों में खाटी जनवादी तेवर देखने को मिलता है। शेरों की कहन ऐसी कि हथौड़े की तरह चोट करे। उनकी लगभग सभी ग़ज़लें शोषित, श्रमजीवी समाज के पक्ष में खड़ी दिखाई देती हैं। अदम गोंडवी के बाद आज तीन पीढ़ी के लोग एक साथ ग़ज़ल कहने में लगे हुए हैं। चूँकि तीनों पीढ़ी के परिवेश बिल्कुल अलग हैं। अतः कहने ढंग अलग होना स्वाभाविक है। कहना न होगा कि ग़ज़ल शिल्प में समझौता बिल्कुल भी नहीं करती। सुरजीत जी युवा ग़ज़लकार हैं। इनका यह पहला सम्पादित संकलन है। इन्होंने ग़ज़लों के चयन में कोई समझौता नहीं किया है इसलिए अधिकांश ग़ज़लें अपने प्रथम पाठ में ही बाँध लेती है।
Author | सम्पादक सुरजीत मान जलईया सिंह |
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Format | Hardcover |
ISBN | 978-81-973380-4-5 |
Language | Hindi |
Pages | 328 |
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