वक़्त कहाँ लौट पाता है (Waqt Kahan Laut Pata Hai / Satya Sharma ‘Kirti’)

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भोगी हुई यातना प्रदर्शन के लिए नहीं होती। लेखिका सत्या शर्मा कीर्ति की लघुकथाओं के पात्र किसी वर्ग विशेष के बजाय समग्र मानव समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। समाज के षट्कोणीय आकार में ये लघुकथाएँ महज़ क़िस्सागोई नहीं है कहीं अनिंद्रा से अभिशप्त तो कहीं आवाज़ के आलंबन से परे सुप्त समाज के ज्वलंत हालात का मिला जुला मसौदा इन लघुकथाओं में तैयार दिखाई पड़ता है। सादगी सहजता के साथ आडंबररहित कहन सत्या शर्मा ‘कीर्ति’ की लघुकथाओं की ख़ासियत है।

सत्या शर्मा ने इन लघुकथाओं में अपने समकाल को प्रतिबिंबित करने का प्रयास किया है। सोशल साइट के कुचक्र में प्रदर्शन की दुनिया को असल दुनिया मान लेने वाले लोग दरअसल में सामाजिक न होकर आत्ममुग्ध हैं। लेखिका ने ऐसे बुनियादी विषयों को केंद्र में रखकर कुछ लघुकथाओं के पात्रों में महीन दृष्टि से समकाल के परिदृश्य को रेखांकित किया है। रचनाशीलता के सहज वेग में उतरी इन लघुकथाओं का क्षितिज पाठकों के मानस से गुज़रते हुए कितना विस्तार पायेगा इसका निर्णय तो साहित्य के पाठकों विशेषकर लघुकथा विधा के शुभचिंतकों को ही करना है।

-डॉ. शोभा जैन
विभागाध्यक्ष (भाषा विभाग)
इंदौर

Author

Satya Sharma 'Kirti'

Format

Paperback

ISBN

978-81-19231-04-1

Language

Hindi

Pages

128

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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