साहित्य में वृद्ध विमर्श की गूँज प्राचीन काल से सुनाई देती रही है, हाँ आज बाल, नारी, दलित और किन्नर विमर्श के बाद वृद्ध विमर्श पुनः प्रासंगिक होकर इस उक्ति को चरितार्थ कर रहा है कि- इतिहास स्वयं को किसी न किसी रूप में दोहराता अवश्य है। सदियों से वृद्धावस्था का बिम्ब दंत हीन, सफेद बाल, ऊर्जा हीन जर्जर काया और शिथिल इंद्रियों के रूप में उकेरा जाता रहा है। उनके ज्ञान और विविध अनुभव के भंडार को अनदेखा कर उपेक्षित और एकाकीपन की पीड़ा भोगने के लिए छोड़ देना समाज में संयुक्त परिवार जैसी संस्था के बिखरने का प्रत्यक्ष प्रमाण है, बावजूद यह जानकर कि वृद्ध तो हमें और आपको भी होना है, फिर अपने ही जन्मदाता के प्रति यह असहनीय उपेक्षित भाव क्यों? जीवन की इस साँझ को वृद्धाश्रम रूपी कृष्ण विवर में धकेल कर किस जुर्म की सज़ा दी जाती है? इन तमाम सवालों का जवाब पाने की जिज्ञासा का परिणाम है यह शोध-पुस्तिका ‘वृद्ध विमर्शः कल, आज और कल’।
Books
वृद्ध विमर्श कल, आज और कल (Vimarsh : Kal, Aaj Aur Kal / Edi. Dr. Reshma Ansari & Dr. Kamal Gogiya)
₹399.00
Author | एडीटर : डॉ. रेशमा अंसारी एवं डॉ. कमलेश गोगिया |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-81-981491-5-2 |
Language | Hindi |
Pages | 260 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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