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विद्रोह के स्वर (Vidroh Ke Swar / Dr. Shivmangal Singh ‘Mangal’)

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‘विद्रोह के स्वर’ पुस्तक में 1757 की प्लासी की लड़ाई से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक की महत्वपूर्ण क्रांतियों की जानकारी संग्रहित है।
भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति में क्रान्तिकारियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है। भारतीय क्रान्तिकारियों के कार्य सिरफिरे युवकों की तरह अनियोजित कार्य नहीं थे। भारत माता के पैरों में पड़ी जंजीर को तोड़ने के लिये सतत संघर्ष करने वाले देशभक्तों की एक अखण्ड परम्परा रही। उन्होंने देश को बचाने के लिये अपना कर्तव्य समझकर शस्त्र उठाये थे। क्रान्तिकारियों का उद्देश्य केवल अंग्रेजों का रक्त बहाना मात्र नहीं था, बल्कि वे तो अपने देश का सम्मान वापस लौटाना चाहते थे। अनेक क्रान्तिकारियों के हृदय में एक और क्रान्ति की ज्वाला थी, तो दूसरी ओर आध्यात्म का आकर्षण भी था। हँसते हुए फाँसी के फंदे का वरण करने वाले और मातृभूमि के लिये सरफरोशी की तमन्ना रखने वाले ये देशभक्त युवक भावुक ही नहीं विचारवान भी थे। वे शोषणरहित समाजवादी प्रजातंत्र चाहते थे। सम्भवतः देश को स्वतंत्रता यदि सशस्त्र क्रान्ति के द्वारा मिली होती, तो भारत का विभाजन नहीं हुआ होता, क्योंकि तब सत्ता उन हाथों में न आई होती, जिनके कारण देश में अनेक भीषण समस्यायें उत्पन्न हुई हैं।

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