क्लिष्टता, कठिनता, एकाकीपन, आत्मकेंद्रित, दंभ आदि भारी-भरकम माहौल में चंद पंक्तियाँ उम्मीद की प्याली बनकर हम सबको उत्प्रेरित करती हैं कि उनकी चुस्कियों में कुछ देर को सबकुछ भुला दिया जाये। मन के, दिल के गुबार को भीतर ही भीतर एक बोझ बना देने से बेहतर है कि अपनी मित्र-मंडली के साथ, अपने परिजनों संग, अपने पसंदीदा लोगों के साथ चुहलबाजी करके, हल्की-फुल्की मसखरी करके, ठहाकों-मुस्कुराहटों के साथ कुछ पल को रहा जाये। उम्मीद की प्याली को उठाकर एक घूँट भर कर देखिये, आप खुद को उसी पल के साथ साम्य स्थापित करते नज़र आयेंगे, जिन पलों में इन पंक्तियों ने सहज रूप में जन्म लिया था।
Author | Dr. Kumarendra Singh Sengar & Dr. Richa Singh Rathore |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-81-19590-55-1 |
Language | Hindi |
Pages | 88 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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