अनामिका सिंह के गीत उनके नवगीतों की पृष्ठभूमि हैं। समाजिक विसंगतियों को अनदेखा करना उन्हें नहीं आता है। निम्न-मध्यमवर्गीय लोगों की पीड़ाओं को मानवीय संवेदनाओं के मर्म के साथ प्रस्तुत करना उनकी विशेषता है। दृश्य, लोक, स्थिति, बिम्ब, प्रतीक आदि का उपयोग उनके गीतों को व्यक्तिगत स्तर से सामूहिक स्तर तक ले जाता है। गीतों में नवगीत की सांकेतिक संभावनाओं को जीने वाले बहुधा गीत नवगीत होने की राह पर हैं। नवगीत-यात्रा में आगे बढ़ जाने के बाद भी दो क़दम पीछे हटकर अपने पूर्वलिखित गीतों को प्रस्तुत करना साहसिक कार्य है। तभी तो सुधांश उपाध्याय कहते हैं- “आश्चर्यजनक यह है कि इन गीतों को पढ़ते हुए यह लगातार आभासित होता है कि अनामिका गीत और पारंपरिक छंदों में लिखते समय कुछ बायीं ओर सरकते हुए अपनी रचनाओं को सामयिक यथार्थ से भी जोड़ रहीं थीं। हालांकि स्पष्टतः यह सब अभी स्थूल ढंग से ही हो पा रहा था किंतु यहीं बदलाव की चिंगारियां उड़ने लगीं थीं। इन गीतों में कुछ नया करने की कसमसाहट और तनाव का बने रहना ही यह बताता है कि अनामिका के गीतानुभव को एक विस्तृत आकाश की खोज थी और उस आकाश में उड़ने की चाह मजबूत हो रही थी। वह अपने गीत-पंखों के रेशे मजबूत कर रहीं थीं। उनका नील गगन थोड़ा और खुल रहा था। धुंध और धुआँ कुछ छँट रहा था। अँधियारे में चाँदी के तार झिलमिलाने लगे थे।”
Author | अनामिका सिंह |
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Format | Hardcover |
ISBN | 978-93-49136-48-9 |
Language | Hindi |
Pages | 104 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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