To Samay Kuchh Aur Hota / Gulab Singh

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नवगीत में बहुत कुछ ऐसा है और आगे जुड़ेगा भी जो साहित्येतिहास की विभूति बन सकता है। राष्ट्रीय सत्ता की परम केन्द्रीयता के समय सतही चिन्तन और साहित्यिक बिखराव कोई खालीपन (वैक्यूम) नहीं भर सकता। उड़ान के बाद तो हिलते हाथ भी नहीं दिखाई पड़ते। सब कुछ अदृश्य हो जाता है। समय साथ भी देता है और अंगूठा भी दिखाता है। दिशान्ध परिवेश की साँय-साँय सुनाई पड़ने के पहले ही हमें गंभीर हो जाना चाहिए। प्रस्तुत संकलन में इन सन्दर्भों से जुड़ी रचना-भूमि तलाशने की कोशिश की गयी है।

Author

गुलाब सिंह

ISBN

978-81-980249-6-1

Language

Hindi

Pages

112

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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