सामाजिक परिवेश के विभिन्न रंगों को समेटे इस काव्य संग्रह का लेखांकन एक गुलदस्ते के समान प्रतीत होता है जिसमें कवयित्री डॉ. सिकंदरा के द्वारा अलग-अलग छटाएँ पन्नों पर बिखेरी हुई ज्ञात होती हैं। कहीं यह छटाएँ स्त्री तत्व व पुरुष तत्व के बीच में निर्मल स्नेह का रूप धारण करती हैं तो कहीं छली जाने के भय से आँखों से झर-झर बहती हुई प्रतीत होती हैं। किसी पृष्ठ पर ये छटाएँ पितृ प्रेम व बड़ों का आशीर्वाद बनकर बरसती हैं तो कहीं बंधनों में बंधी हुई लेखिका के मन में छिपी, माँ-बाप के लिए कुछ ना कर पाने की अपनी तड़प को छुपाने का असफल प्रयास करती हुई दिखाई देती हैं। कहीं सरसता, कहीं सरलता तो कहीं सजगता के भाव से बुनी हुई ये कविताएँ लगभग हर पाठक को अपने-अपने मन की बात जैसी विदित होती हैं।
Author | डॉ.सिकंदरा सनवाल |
---|---|
Format | Hardcover |
ISBN | 978-93-49136-12-0 |
Language | Hindi |
Pages | 120 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
Reviews
There are no reviews yet.