शून्यकाल का आलाप ( Shoonyakaal Ka Aalap / Dr. Lok Setia )

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‘शून्यकाल का आलाप’ डॉ. लोक सेतिया सेतिया का हास्य-व्यंग्य संग्रह है। वे कहते हैं- “बड़ी आसान लगती हैं हास्य व्यंग्य की राहें। चलना पड़े तो समझ आता है, डगमगाने लगते हैं हाथ कलम पकड़े शब्दों के अर्थों से उलझते, फ़िसलने लगते हैं पांव जब बहते दरिया के पानी में पत्थर आते हैं अचानक नीचे। घायल होने से डूबने तक का एहसास हमेशा बना रहता है और तैरना सीखा नहीं फिर भी कागज़ की नैया पर हो कर सवार निकल पड़ते हैं इस पार से उस पार भंवर से गुज़र कर हर बार। सच्ची कड़वी बात को मीठी हर्गिज़ नहीं बना सकते नमक मिर्च मसाला लगाकर परोसना होता है उन्हीं के सामने जिनकी असलियत पर कटाक्ष करना होता है सलीके से। किसी बेवफ़ा सनम की बेवफ़ाई उसी को सुनानी भी और उसी की ज़ुबान से वाह वाह भी निलकना किसी करामात से कम नहीं। हज़ूर समझते भी हैं मगर नासमझ भी बन कर लुत्फ़ उठाते हैं बुरा नहीं मानो हंसी हंसी में कहकर हमारे संग मुस्कराते हैं।”

Author

Dr. Lok Setia

Format

Hardcover

ISBN

978-93-90135-66-0

Language

Hindi

Pages

96

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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