ससुराला (Sasurala / Vasant Jamshedpuri)

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‘ससुराला’ एक नवीन ही शब्द है हिन्दी के लिए, किन्तु इसे समझना बहुत कठिन भी नहीं है यह ‘मधुशाला’ से प्रेरित होकर निर्मित हुआ है। मात्र शब्द ही नहीं इस खण्ड-काव्य की रचनाएँ भी स्व. हरिवंशराय बच्चन की मधुशाला से प्रेरित होकर ही ससुराल को केंद्र में रखकर की गई हैं। कुकुभ, लावणी जैसे कर्ण प्रिय छंदों पर रचे इस खण्ड-काव्य की रचनाएँ एक श्वास में बिना रुके पढ़ने योग्य हैं और निःसंदेह कवि की काव्यानुभूति को नमन करने को प्रेरित करती हैं। भाषा की भव्यता और शब्दों की विविधता को पढ़कर मन विभोर हो जाता है। कवि ने सारे कथ्य-तथ्य अपने छंदों में ऐसे पिरोये हैं जैसे किसी स्वर्णकार के द्वारा आभूषण में नगीनों का प्रयोग किया गया हो। ‘कृपा करो शिवनंदन मुझ पर लिख पाऊँ मैं ससुराला… ससुराल पर काव्य करना हो तो आवश्यक है भगवान् श्री गणेश के साथ ही भगवान् शिव, माता पार्वती, माता शारदे सभी के आशीर्वाद का साथ होना और वही कवि ने काव्यारंभ में सभी देवी-देवताओं से माँगा भी है। विवाह पश्चात पुरुष के जीवन में आने वाले अनुभवों को, ससुराल के वार-त्योहारों के साथ-साथ सभी छोटी-बड़ी घटनाओं को अपने काव्य में स्थान दिया है वह कवि की काव्य साधना को स्पष्ट रूप से दर्शा रहा है। ‘कोई रंग बसंती लाया, कोई लाल, हरा, काला। जीजा का अभिषेक कर रहे, मिल करके साली-साला’। ससुराल में होती छोटी-छोटी छेड़छाड़ को कवि ने जिस सुंदरता से छन्दोबद्ध किया है वह उनके श्रेष्ठ काव्य-कौशल का परिचायक है।

Format

Hardcover

ISBN

978-93-91081-60-7

Language

Hindi

Publisher

Shwetwarna Prakashan

Pages

92

1 review for ससुराला (Sasurala / Vasant Jamshedpuri)

  1. Rated 5 out of 5

    Mamchand Agarwal

    यह बिल्कुल नए विषय को ले कर लिखी गई पुस्तक है,सबको पढ़ना चाहिए

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