कविता में छंद का महत्त्व सर्वविदित है। अपने यहाँ छंदोबद्ध कविता की वैभवशाली परम्परा रही है। यह छंद ही है जो कविता में लय को सुनिश्चित करता है। कविता और छंद एक-दूसरे से इतने जुड़े हैं कि उन्हें अलगाया नहीं जा सकता। गीत, ग़ज़ल, मुक्तक और दोहा आज भी कविता के सिरमौर हैं, जिनकी रचना छंद की जानकारी के बिना सम्भव नहीं। गद्यकार भी अपनी बात को प्रभावी बनाने के लिए प्रायः किसी शेर या दोहे का सहारा लेते हैं।
इस पुस्तक का उद्देश्य छंद कविता में प्रवेश के इच्छुक लोगों के लिए दिग्दर्शन का है। इसमें मात्रा, वर्ण, गण, लय (यति, गति), तुक और अनेक प्रकार के वर्णिक और मात्रिक छंदों के बारे में सोदाहरण जानकारी दी गयी है। साथ ही, दोहा, गीत, ग़ज़ल आदि के शिल्प के बारे में आसानी से समझनेवाली जानकारी दी गयी है।
यह जानना दिलचस्प होगा कि सम मात्रिक छंदों में अनेक छंद मापनीयुक्त होते हैं जिनमें ग़ज़लें कही जाती हैं। ऐसे छंदों के अध्ययन से नवोदित कवि गीत, ग़ज़ल, मुक्तक आदि के सृजन में लाभ उठा सकें। काव्य-रचना करते समय अनेक प्रकार की चूकें हो जाया करती है, उस बारे में भी अपेक्षित चर्चा की गयी है, बल्कि एक अध्याय, ‘काव्य-दोष’ का दिया गया है। निस्संदेह यह पुस्तक नवोदित और स्थापित, दोनों प्रकार के कवियों के लिए उपयोगी है।
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