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प्रीत जीवन में आने लगी (Preet Jeevan Mein Aane Lagi / Ravikant Shukla ‘Khamosh’)

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‘प्रीत जीवन में आने लगी’ कवि रविकान्त शुक्ल ‘ख़ामोश’ का प्रथम काव्य-संग्रह है। प्रस्तुत संग्रह में कुल 51 रचनाएँ हैं। इन रचनाओं का विषय फलक अत्यंत व्यापक है। इनकी रचनाएँ जीवन के विविध रंगों में रंगकर पाठकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं। प्रस्तुत संग्रह की रचनाओं में सत्य, सौंदर्य और संवेदना की सफल अभिव्यक्ति हुई है। कवि के कोमल हृदय में जब प्रीत की कोमल कली खिलती है तो उनकी लेखनी रूपी कोकिला प्रेम में उन्मत्त होकर उस प्रेम के आगमन की सूचना देती हुई कहती है- ‘प्रीत जीवन में आने लगी।’
प्रस्तुत संग्रह की रचनाओं में कवि न केवल जीवन की विसंगतियों व विडम्बनाओं को चित्रित करता है अपितु वह मानवता के पक्ष में एक पैर पर खड़ा भी दिखाई देता है। प्रस्तुत संग्रह में न केवल प्रेम, प्रकृति, परिवार व समाज आदि विषयों का चित्रण हैं अपितु गाँव-देहात व राष्ट्र-प्रेम के बहुतेरे चित्र भी चित्रित हुए हैं। एक विशेष प्रकार की उन्मुक्तता इस संग्रह को एक विशेष पहचान देती है। इस संग्रह की कविताओं में कहीं-कहीं दार्शनिकता व आध्यात्मिकता के भी दर्शन होते हैं परंतु अपने नीरस से नीरस शब्दों को भी संवेदनाओं के रस में घोलकर काव्य-सृजन कर लेने की कला में कवि ‘ख़ामोश’ को महारथ हासिल है। इस संग्रह में प्रयुक्त भाषा अत्यंत सहज, सरल, सुबोध व मधुर है। इन रचनाओं में प्रयुक्त भाषा भावनुकूल है।
कुल मिलाकर कवि की अधिकांश रचनाएँ पाठकों से सीधा संवाद करती हुई उनको देर तक ठहर कर सोचने के लिए मजबूर करती है।

-राम नाथ ‘बेख़बर’

Author

Ravikant Shukla 'Khamosh'

Format

Hardcover

ISBN

978-81-19231-23-2

Language

Hindi

Pages

78

Publisher

Shwetwarna Prakashan

1 review for प्रीत जीवन में आने लगी (Preet Jeevan Mein Aane Lagi / Ravikant Shukla ‘Khamosh’)

  1. Mrityunjay Kumar Gupta

    *’प्रीत जीवन में आने लगी’ – मेरे विचार*

    “प्रीत जीवन में आने लगी” रवि कान्त शुक्ल ‘खामोश’ जी का एक पठनीय काव्य संग्रह है।
    माँ शारदे की वन्दना से आरम्भ होकर यह संग्रह हमें काव्य की कई विधाओं से परिचय कराता है। जहाँ ‘शहर की बिजली’, ‘काॅफी-हाऊस’ और ‘पाकिस्तान हमारा है’ जैसी रचनाएँ आज के चिन्तनीय हालात पर सशक्त प्रहार करती हैं, वहीं ‘यंत्र-एक आत्मा’ और ‘मैं भारत हूँ ‘ जैसी कविताएँ राष्ट्रभक्ति के भाव से परिपूर्ण हैं।
    लेकिन इस काव्य संग्रह का असली आनन्द तो रवि जी द्वारा रचित हिन्दी गजलों का रसास्वादन करके मिलता है। हिन्दी गजल में तो रवि जी को महारत हासिल है। सच पूछिए तो खूबसूरत हिन्दी गजलों की यात्रा ‘सफर’ से शुरू होती है और ‘कशमकश’ तक निरंतर बनी रहती है।
    कुछ शेर तो लाजवाब हैं और बरबस वाह-वाह करने के लिए बाध्य कर देते हैं। ऐसी कुछ पंक्तियाँ जो सचमुच काबिलेतारीफ हैं:-
    आखिरी गर सफर नहीं होता,
    तू मेरा हमसफ़र नहीं होता।
    चाहिए होना इक रिवायत का,
    खाली दीवारों से घर नहीं होता।
    इस संग्रह की हिन्दी गजलों में कुछ शेर तो बड़े दमदार हैं, जिनका कोई मुकाबला नहीं मसलन-
    वो काटने को वक़्त आए थे यहाँ,
    हम समझ बैठे उन्हें मेरी तलाश है।
    और
    गुस्ताख था वह सर उठाके मर गया,
    जबकि उँगली भी यहाँ उठाना गुनाह है।
    कुल मिलाकर मुझे ‘प्रीत जीवन में आने लगी’ काव्य संग्रह पढ़कर बहुत सुकून मिला। संभवतः साहित्य के सभी साधकों को यह पुस्तक जरूर पसंद आएगी।
    और अपनी बात का समापन मैं रवि जी के एक बड़े अर्थपूर्ण शेर से करना चाहूँगा:-
    बेबसी को, मजलूम की आवाज चाहिए,
    पंख नहीं हौसलों की परवाज चाहिए।

    ~ मृत्युंजय

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