प्रतिरोध या प्रतिवाद हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है। जहाँ भी दमन, अन्याय, अत्याचार, अधीनता तथा भेदभाव की प्रवृत्तियाँ होती हैं, वहाँ प्रतिरोध की प्रक्रियाएँ भी निरन्तर चलती रहती हैं। प्रतिरोध के शब्द धारदार हथियार की तरह होते हैं, जिनके माध्यम से हाशिए पर खड़े आम आदमी के जनतांत्रिक अधिकारों को बल मिलता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो प्रतिरोध वह ब्रह्मास्त्र है, जिसके बलबूते हम अपने देश व समाज में स्वतंत्रता, समानता व भाईचारा की भावना को न केवल कायम रख सकते हैं, अपितु सुदृढ भी कर सकते हैं।
जहाँ तक सवाल हिंदी ग़ज़ल का है, तो इसका जन्म ही प्रतिरोध के गर्भ से हुआ है। प्रतिरोध का स्वर हिंदी ग़ज़ल का केंद्रीय स्वर है। असंतोष, आक्रोश, असहमति और प्रतिवाद के स्वर से हिंदी ग़ज़ल लबरेज़ है। यही वे स्वर हैं, जो हिंदी ग़ज़ल को एक विशिष्ट पहचान देते हैं। हिंदी ग़ज़ल का समाज से अत्यंत गहरा सरोकार है। आम-जन हिंदी ग़ज़ल की रूह में बसते हैं। यही कारण है कि आम-जन की पीड़ा इस विधा के मूल में है।
Author | सं. राम नाथ 'बेख़बर' |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-81-980249-8-5 |
Language | Hindi |
Pages | 168 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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