मुक्तक मानस चार खंडों में रचित मुक्तक संग्रह है। चारों ही खंड छंदबद्ध हैं। जिनमें विषयों की विविधता इतनी विराट है कि नित नए प्रश्न आपके मन को उद्वेलित करते हैं। खंडों के कुछ मुक्तकों में इतना आवेग है जैसा कि प्रगतिवादी कवियों में देखने को मिलता था। इसके अलावा अनेक मुक्तक ऐसे भी हैं जिनमें एकांतिक अनुभव, प्रेम की विराट चेष्टा, औघड़पन और शिशुवत् निश्छलता भी। कवि शेष ने अपने पहले खंड में विधाता छंद में अपने मुक्तकों को सजाया है। प्रथम मुक्तक में ही उनका व्यक्तित्व दृष्टिगोचर होता है। प्रथम मुक्तक ही लोकमंगल की साधना करता हुआ जान पड़ता है। वे उपदेशक न होकर आत्ममंथन करना उचित समझते हैं।
दूसरे खंड में कवि की भाषा कहीं-कहीं पर अधिक चलती सी चटकीली-मटकीली सी है। वे मानव मूल्यों को नष्ट करने वालों पर चोट करते हैं। कहीं-कहीं पर अपनी भाषा से समाज के उन सभी वर्गों चाहे वे युवक हों, राजनेता हों, कवि या लेखक हों, या विभिन्न धर्मों के आचार्य हों, वे कहने से नहीं चूकते हैं। वे अपनी इस व्यंगात्मकता से पाठकों पर जरूर प्रभावित करेंगे।
तीसरे खंड में कवि की वाणी अत्यधिक प्रखर है वे परसाई जी की तरह नेताओं, ढोंगियों, धर्म के ठेकेदारों, धार्मिक पाखंडता, समाज के व्यभिचारियों, आश्रय प्राप्त राजनीतिक गुंडों सहित कर्मयोग के मार्ग से विचलित आम आदमियों पर प्रहार करते दिखाई देते हैं। हिंदू-मुसलमान धर्म पर राजनीति करने वालों पर वे अधिक रोष प्रकट करते हैं। ब्राह्मण, राजपूत, ठाकुर, दलित समाज में रहने वाले अवसरवादी लोगों के लिए कवि की लेखनी अग्निवर्षा करती दिखाई देती है।
अंतिम खंड में कवि ने जीवन मूल्यों से प्रेरित तथा अनुभव के मुक्तक अधिक लिखें हैं। कवि शेष जी कवि की पीड़ा, कवि का धर्म, कवि और कविता के मानक तत्त्वों पर अपने पक्ष रखते हैं। ‘वियोगी होगा पहला कवि’ जैसे भाव कवि के मुक्तकों की पहचान है। अनुभव के आकाश पर कवि की प्रज्ञा है, शक्ति है, जिससे जीवनबोध कराने वाले मुक्तकों की लंबी श्रृंखला बन पड़ी है।
Author | Ramakant Singh 'Shesh' |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-81-98061-32-4 |
Language | Hindi |
Pages | 112 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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