मुझमें कोई नदी है (Mujhmein Koi Nadi Hai / Dharmendra Gupt ‘Sahil’)

200.00

Minus Quantity- Plus Quantity+
Buy Now
Category: Tag:

धर्मेन्द्र गुप्त ‘साहिल’ अपनी ग़ज़लों में मनोरम कल्पना से कुछ शब्दों को नवीन रूप में ढालने का प्रयास करते नज़र आते हैं। भाषा के प्रति इनका दृष्टिकोण साफ़ है। जीवनानुभवों की अभिव्यक्ति के लिए ऐसे शब्दों का व्यवहार करते हैं जिससे कहीं भी भावों में अवरोध की गुंजाइश नहीं रह जाती है। संकलित ग़ज़लों में इनकी वैविध्यपूर्ण जीवन दृष्टि व्यक्त हुई है। प्रेम, तथ्य, भाव, और ग़ज़ल के कला पक्ष में संवेदना के स्तर पर सारी ग़ज़लें परिपक्व हैं। प्रेम और जीवन का बोध इनकी ग़ज़लों का केंद्रीय तत्व है जिसमें आम जनता की पीड़ा के चित्र हैं। अनेक ग़ज़लें हैं जिनमें पारिवारिक जीवन की स्मृतियाँ निर्वासन की पीड़ा को व्यक्त करती हैं। धर्मेन्द्र बिम्बों और प्रतीकों के सृजन के प्रति सर्वथा आग्रहशील दिखते हैं।

Shopping Cart