राहुल शिवाय का जो नया नवगीत संग्रह है- ‘मिट्टी कटी किनारों की’ की सभी रचनाएँ पढ़ कर यह अपील करना चाहूँगा कि गीत-नवगीत की कथ्य-कहन-प्रक्रिया देखनी हो तो इस संग्रह के गीत मिसाल हैं। इसकी अंतर्वस्तु अपनी सलीकेदार प्रस्तुति के कारण कहीं भटकती नहीं।
इस संग्रह में समकालीन चेतना के नए स्वर के नवगीत हैं अर्थात् परम्परित भाषा-‘टोन’ से कुछ अलग हट कर ‘चरैवेति’ चरितार्थ हुआ है। पाठकगण एक नए जागरण-भाव की आश्वस्ति के साथ-साथ भाषा के नये विकल्पों के अग्रगण्य हो सकते हैं।
-वीरेन्द्र आस्तिक
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