डॉ. आदित्य रंजन जैसे अध्येता की यह शोधपरक पुस्तक निश्चित ही पूर्व पुस्तकों की पूरक और नये लोगों के लिए प्रेरणादायक सिद्ध होगी। इतिहास वैसे भी गतिशील विश्व का अध्ययन है और यदि मौर्योत्तर काल जैसे किसी संधिकाल का विश्लेषण हो तो और भी आवश्यक होने के साथ दिलचस्प हो जाता है, क्योंकि संस्थाओं के विकास, विस्तार और परिवर्तनों के अध्ययन से ही समाज एवं संस्कृति के परिवर्तनों की जानकारी मिलती है। इसी काल से ही उत्तर भारत में सामतवाद के प्रारंभिक चरण की शुरुआत होती और शिल्प तथा श्रेणियों से लेकर वर्ण व्यवस्था के समानांतर जाति व्यवस्था के लक्षण भी स्पष्ट होने लगते हैं। डॉ. आदित्य रंजन जी ने पूरे परिवेश और उसकी पृष्ठभूमि को बहुत वैज्ञानिक और संतुलित ढंग से समेटा है। इसीलिए इसकी वस्तुनिष्टता बनी हुई है और यह इस युग के लिए एक आवश्यक संदर्भ पुस्तक साबित होगी।
Author | डॉ. आदित्य रंजन |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-93-95432-58-0 |
Language | Hindi |
Pages | 136 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
अखिलेश कुमार अरुण –
यह पुस्तक वास्तव में बहुत ही उपयोगी है