मंटो क्लासिक्स -4 (Manto – 4 / Saadat Hasan Manto)

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मंटो अपने दौर के उन चुनिन्दा रचनाकारों में से एक थे जिन्होंने अपने साहित्य को वास्तव में समाज का दर्पण बना दिया था। मंटो का ‘साहित्य-दर्पण’ इतना साफ़ था कि उसमें समाज जस का तस नज़र आता था। उन्होंने समाज की नंगी सच्चाइयों पर सभ्यता का बनावटी नक़ाब डालने का प्रयास कभी नहीं किया। चाहे उनपर अश्लीलता और फूहड़पन के कितने भी आरोप लगे हों लेकिन उन्होंने अपना लिखने का अंदाज़ कभी नहीं बदला। उनकी कहानी में जहाँ औरत के स्तन की बात हो उन्होंने स्तन का ही प्रयोग किया। अपनी कहानियों को अभिजात वर्ग की थाती न बनाकर उन्होंने हर उस जगह खुलकर गाली-गलौज का भी इस्तेमाल किया जहाँ हम आम तौर पर सुनते हैं। मंटो उस दौर के साहित्यकार थे जब अविभाजित भारत या पाकिस्तान में ‘फेमिनिज्म’ जैसी कोई विचारधारा अस्तित्व में नहीं थी लेकिन उनकी कई रचनाएं इस विचारधारा के करीब प्रतीत होती हैं।
श्वेतवर्णा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब में हमने मंटो की वेश्याओं से सम्बंधित 12 चुनिन्दा कहानियों को संकलित किया है।
हालाँकि मंटो ने इस विषय पर काफ़ी कुछ लिखा है, हमने इस पुस्तक के लिए ‘जानकी’, ‘काली सलवार’, ‘सौ कैंडल पॉवर का बल्ब’, ‘सरकण्डों के पीछे’, ‘1919 की एक बात’, ‘हतक’, ‘झुमके’, ‘बर्मी लड़की’, ‘सेराज’, ‘मोमबत्ती के आँसू’, ‘डरपोक’ और ‘हामिद का बच्चा’ का चयन किया है। ये सभी कहानियाँ वेश्याओं के जीवन के विविध आयामों और अनछुए पहलुओं को छूती हैं। इन कहानियों को पढ़ कर पाठकों को यह एहसास होगा कि मंटो ने जिस भी विषय को उठाया उसके साथ पूरा न्याय किया है। उनकी कलम न समाज के विकृत मानसिकता को उघाड़ कर रख देने में थरथराई न समाज की वैचारिक नग्नता की व्याख्या करने में शरमाई।
वैश्याएँ सदैव से हमारे समाज का अभिन्न हिस्सा रही हैं लेकिन उनके विषय में हमेशा फुसफुसाहटों में ही बात होती रही है। मंटो उन गिने चुने लेखकों में से हैं जिन्होंने वैश्याओं को एक अछूत विषय न मानकर उनके विषय में खुलकर लिखा। उनकी कहानियों की वैश्याएँ किसी अलग दुनिया की प्राणी न होकर समाज का ही अभिन्न हिस्सा नज़र आती हैं।
मंटो की चुनिन्दा कहानियों की पुस्तक-शृंखला में वैश्या-आधारित कहानियों की इस किताब को लाने के पीछे हमारा उद्देश्य यही है कि उन विषयों पर हम खुल कर बेझिझक चर्चा कर सकें जिनकी शुरुआत मंटो ने वर्षों पूर्व कर दी थी। यह पुस्तक शृंखला मंटो के विरासत को आगे बढ़ाने की एक कोशिश है।
हमें उम्मीद है कि जिन विषयों पर हम फुसफुसाहटों में चर्चा करते हैं उनपर खुल कर बात करने के लिए मंटो की कहानियाँ हमें प्रेरित करेंगी। इसी उम्मीद के साथ श्वेतवर्णा प्रकाशन ‘मंटो’ पुस्तक शृंखला अपने पाठकों को समर्पित करता है।

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