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कृष्ण (Krishna / Aniruddha Prasad Vimal)

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कृष्ण, हिन्दी और अंगिका के महत्वपूर्ण कवि/कथाकार अनिरुद्ध प्रसाद विमल जी द्वारा महाभारत के युद्ध तथा यदुवंश के विनाश के बाद कृष्ण के जीवन के अंतिम क्षणों में राधा से किये गये संवाद पर आधारित प्रबंध काव्य है। यह काव्य द्वापर की कथा के माध्यम से कलयुग की समस्याओं और उसके समाधान का मार्ग प्रशस्त करता है।

इस काव्य में राधा और कृष्ण के तन्मयता के क्षणों में कृष्ण को द्वापर के महानायक के रूप में तौला गया है। छंदमुक्त विधा में लिखा गया यह काव्य लय एवं संवेदना से परिपूर्ण है।

Krishna, Hindi aur Angika ke mahatvapoorN kavi/kathaakaar Aniruddh Prasaad Vimal ji dWara mahaabhaarat ke yuddh tatha yaduvansh ke vinaash ke baad kRiSN ke jeevan ke antim kSaNon men raadha se kiye gaye sanvaad par aadhaarit prabandh kaavy hai. Yah kaavy dvaapar ki katha ke maadhyam se kalayug ki samasyaaon aur usake samaadhaan ka maarg prashast karata hai.

Author

अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Format

Paperback

ISBN

978-81-951843-9-2

Language

Hindi

Pages

136

Publisher

Shwetwarna Prakashan

6 reviews for कृष्ण (Krishna / Aniruddha Prasad Vimal)

  1. डॉ. अमरेन्द्र

    कवि कथाकार अनिरुद्ध प्रसाद विमल का सद्यः प्रकाशित प्रबंधात्मक काव्य ‘ कृष्ण ‘ इसलिए भी महत्वपूर्ण बन पड़ा है कि इसमें कवि ने कृष्ण के जीवन से उन प्रसंगों को ही प्रमुखता से उठाया है, जो आज के समय को संदेश के रूप में बहुत कुछ दे सके और काव्य की यही लक्ष्य-दिशा कवि के रचना-कर्म और कृति को श्रेष्ठ बनाती है । विमल को इस महत्वपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक बधाई !

  2. कुमार संभव

    मैंने श्री अनिरुद्ध प्रसाद विमल द्वारा विरचित प्रबंध काव्य ‘ कृष्ण’ जिसकी प्रति मैंने डाक से आर्डर कर मंगवाया था को पूरे मनोयोग से पढ़ लिया है।वर्तमान विश्व मानवता की बहुत सारी त्रासदियों को कवि ने बड़ी ही सफलता के साथ कृष्ण के चरित्र के माध्यम से अभिव्यक्त किया है।जहाँ यदुवंशियों के विनाश के बाद वे शोक संतप्त हैं,वही पृथ्वी के अनुरोध के माध्यम से वर्तमान में बढ़ती हुई जनसंख्या के भार से पृथ्वी को मुक्त करने की चिंता को भी दर्शाया गया है।युद्ध की विभीषिका कितनी भयाबह होती है उसका चित्रण कर कवि ने वर्तमान में युद्ध में उन्मत्त विश्व को जो साम्राज्यवादी रुख अपनाये हुए है को भी कवि ने कई स्थलों पर सचेत किया है।नारी विमर्श पर तो कवि की इतनी गहरी दृष्टि है कि वह अभिभूत कर लेता है।वैसे भी कृष्ण का सम्पूर्ण चरित्र नारी के प्रति उदार दृष्टिकोण से परिपूर्ण रहा है।वह चाहे कुब्जा उद्धार हो या जरासंध और नरकासुर की नारी बलि की कामना,सबके लिए बिना किसी स्वार्थ के युद्ध कर उसे मुक्ति देते हैं कृष्ण।
    कुल मिलाकर समूचे कृष्ण प्रबंध काव्य में कवि अनिरुद्ध प्रसाद विमल युग चेता, युगद्रष्टा कवि के रूप में अभिव्यक्त हुए हैं।वर्तमान युग वैषम्य और मानवीय मूल्यों के प्रति इनकी सजग दृष्टि ने इस काव्य को निश्यच ही अमर और कालजयी कृति बना दिया है।कवि के समक्ष कोई एक कालखंड नही है।वह एक साथ ही तीनों कालखण्डों में विचरण करता हुआ प्रतीत होता है और अतीत को वर्तमान संदर्भों से जोड़कर भविष्य का द्वार भी खोलता है।
    श्वेतवर्णा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रवंध काव्य ‘कृष्ण’ का आवरण मनमोहक तो है ही दृष्टिसम्पन्न भी है।कवि अनिरुद्ध प्रसाद विमल का आत्मकथन बार बार पढ़ा लेकिन मन नहीं भरा।कवि को इस विवेकसम्पन्न काव्य लेखन के लिए बधाई और साथ ही श्वेतवर्णा प्रकाशन को भी इतने उच्च कोटि के काव्य प्रकाशन के लिए बधाई।

  3. डॉ भावना

    ‘कृष्ण ‘ अनिरुद्ध प्रसाद विमल का सद्य प्रकाशित प्रबंध काव्य है ,जो श्वेतवर्णा प्रकाशन से छप कर आया है। ‘कृष्ण’ भारतीय समाज में भगवान के रूप में पूजे जाते हैं और वे अकेले ऐसे पौराणिक चरित्र हैं जो 16 कलाओं से पूर्ण पुरुष के रूप में जाने जाते हैं। उनकी लोकप्रियता निर्विवाद रूप से सभी देवताओं में सर्वाधिक है। बच्चे जहां खुद में माखन चोर का अक्स देखते हैं, वहीं किशोर खुद में ऐसे बांसुरी वादक कृष्ण की छवि जो राधा के प्रेम में आकंठ डूबा है। युद्ध नीति से लेकर राजनीति तक आपको प्रभावित किये बिना नहीं रह सकता। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी ,आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्जित महान पुरुष हैं । अनिरुद्ध प्रसाद विमल ने अपने आत्मकथन में स्वयं कहा है कि “कृष्ण जैसे असाधारण व्यक्तित्व पर लिखना कितना कठिन और विरल कार्य है, यह तब जाना जब जिद ठान कर लिखना आरंभ किया ।मानव मूल्यों के प्रत्येक आयामों को गहरे स्पर्श करने वाला इनका व्यक्तित्व, इनका हंसता हुआ धर्म, गीता के माध्यम से दिया गया इनका विशाल ज्ञान, स्त्रियों के प्रति इनकी उदार दृष्टि सब कुछ अनिवर्चनीय है ।मैंने इन सब को अपने काव्य में समेटने का प्रयास किया है।”
    ‘कृष्ण’ प्रबंध काव्य से गुजरते हुए मुझे एकबारगी तुलसीदास रचित रामचरितमानस का ध्यान हो आता है, जहां शिव पार्वती को रामचरित कहना शुरु करते हैं और बहुत ही रोचक तरीके से एक बेहद लोकप्रिय महाकाव्य का सृजन होता है। ठीक वैसे ही,अनिरुद्ध प्रसाद विमल जी के मुख्य पात्र ‘कृष्ण’ राधिका को संबोधित कर अपने जीवन के तमाम जद्दोजहद को व्यक्त करते हैं। जब वे कहते हैं कि ” हे प्राण प्रिय राधिके आज मैं/ हां मैं, तुम्हारा प्राण सखा कृष्ण/ रणभूमि में खड़ा हूं नितांत अकेला /कोई नहीं है पास मेरे, सिवा तुम्हारे/ सिर्फ तुम हो प्राण मेरे/ और तुम्हारी याद है तो ,प्रेम की प्रकाष्ठा का भान होता है ।मन वीणा के हर एक तार झंकृत हो उठते हैं। जब कृष्ण यह स्वीकार करते हुए कहते हैं कि” सच ही मैं कह रहा हूं/ शपथ मैया की ले रहा हूं /नहीं निकलना चाहता था मैं कभी/ ब्रज गांव के इस आनंद से /वृंदावन की इस घने कुंज की छांव से/ गोकुल की गलियों की माया से/ प्रेम ही प्रेम फैला था चारों तरफ /मैया का/ नंद बाबा का/गोप ग्वालों का/ सकल गोपिकाओं का / उस पर राधा का प्रेमिल अनुराग /यूं बरसता था /जैसे घनीभूत काले-काले मेघों की / रिमझिम फुहार। इस संग्रह से गुजरते हुए आप कई बार रोमांचित होंगे, कई बार आपकी आँखें रोयेंगी ।कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अनिरुद्ध प्रसाद विमल का प्रबंध काव्य ‘ कृष्ण ‘ कृष्ण जैसे विराट व्यक्तित्व के हरेक पहलू को शब्दों में बांधने का सफल प्रयास है।

  4. डॉ मधुसूदन साहा

    कविवर विमल जी के मानस से नि:सृत कृष्ण जैसे विमल व्यक्तित्व पर केन्द्रित यह विरल खण्डकाव्य का सृजन और प्रकाशन एक संयोग की ही बात है।आज की इस विषम परिस्थिति में ऐसे ग्रंथ के वाचन,श्रवण और अनुशरण से मन को शांति मिलेगी तथा हृदय तल में विमल भावनाओं की लहरें तरंगायित होंगी, यह मेरा विश्वास है।

  5. Garima saxena

    मैंने इस मँगाया और मैं इसे लगभग पढ़ चुकी हूँ..
    निश्चित ही सुंदर प्रबंध काव्य है…जो कृष्ण के जीवन आयामों को समकालीन संदर्भों से जोड़कर प्रस्तुत करता है…

  6. सोनिया वर्मा

    कृष्ण की सभी लीलाओं को अगर जीवन से जोड़े तो हर समस्या का समाधान अवश्य मिलेगा।अगर आप कृष्ण के नज़रिए से उनके जीवन की घटनाओं को समझना चाहते हैं तो इस पुस्तक को आपको अवश्य पढ़ना चाहिए।

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