किससे करें गिला (Kisase Karein Gila / Rajendra Verma)

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‘किससे करें गिला’ के नवगीतों की भाषा में जनवादी स्वर का प्रभाव है और प्रयुक्त व्यंग्योक्तियों में तीर-चुभन भी ख़ूब है, परंतु उसमें कहीं-कहीं उल्लास के स्वर भी हैं, और कहीं-कहीं, ‘बीती ताहि बिसार दे…’ के स्वर भी। बिम्ब-प्रतीकों का भी इसमें बख़ूबी इस्तेमाल हुआ है जिससे अभिव्यक्ति धारदार बन पड़ी है।
निष्कर्ष रूप में, इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि यहाँ संगृहीत नवगीत, नवगीत की भाषा के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। रचनाकार ने संवेदना की ज़मीन को तैयार करने के लिए एक अनूठी कहन-भंगिमा अपनाई है। इस ज़मीन पर उसने जो भी और जैसे भी कहना चाहा, पूरा-का-पूरा कह लिया है।

ISBN

978-81-969813-7-2

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