“ख़्वाहिश” राम नाथ ‘बेख़बर का दूसरा ग़ज़ल संग्रह है। संग्रह की ग़ज़लें अपने विषय फलक में व्यापक हैं। इसे ग़ज़लकार की अपनी ख़्वाहिश के रूप में भी देखा जा सकता है, क्योंकि कई जगह ग़ज़लकार स्वयं प्रत्यक्ष हो उठा है। ‘ख़्वाहिश’ संग्रह की रचना ‘जिंदगी’ की धार की खोज के बीच हुई है। ‘बेख़बर’ जी की ग़ज़लों में एक पीड़ा है, दर्द है। कई बार यह पीड़ा नाउम्मीदी-सी दिखती है, किन्तु अगले ही पल कवि की अंतर्दृष्टि उसे ऊपर उठा देती है। इस ग़ज़ल संग्रह में विषय का वैविध्य तो है ही, साथ ही कथ्य के अंदाज़ की बहुविध छवियाँ भी हैं।
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