खिली-खिली है नागफनी (Khili Khili Hai Nagfani / Ishwar Karun)

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‘खिली-खिली है नागफनी’ 46 कविताओं का एक ऐसा नवगीत-संग्रह है जिसमें कवि ईश्वर करुण का भाव संसार बिखरा पड़ा है। कहीं बुलबुल खंजन से बतियाती है तो कहीं विस्थापन का दर्द कवि के हृदय को सालता है।
ओज पूर्ण भाषा में कवि जापान की धरती पर हिंदुस्तानी भाला के गरजने की बात करते हैं तो कहीं कविधर्म और कवि ईमानदारी की चर्चा करते हैं।परिवार के जुड़ने पर घर के खुश होने, चौकी, पीढा, कुर्सी और खटोले के खुश होने का जिक्र कहीं मन को द्रवित कर जाता है। निर्जीव वस्तुओं का मानवीकरण कवि की संप्रेषण शक्ति को और भी धारदार बनाता है।विदेश में बसे बच्चों का अपने गांव-घर आना और फिर वापस लौट जाना माता-पिता को कहीं अंदर तक दुखी कर जाता है किंतु बच्चों के अच्छे भविष्य की खुशियों में वह भी अपनी खुशियां देख लेते हैं। गांव से शहरों की ओर पलायन और शहरों तथा देश से विदेश पलायन तेजी से बढ़ता जा रहा है। कवि आशावादी हैं कि अब उन्हें ना तो भेड़ बकरियां बनने की जरूरत है और ना ही शहर में बोंजाई बनकर जीने की जरूरत है, इससे तो अच्छा यही होगा कि गांव में पाकड़ बनकर जिया जाये। पीड़ा का नवगीत लिखते-लिखते कवि समुंदर के तीर चले जाते हैं और पानी खोजने का प्रयास करते हैं।गांव लौटने के तीव्र मनोभाव कई कविताओं में दिखाई देते हैं। सूर्य की रोशनी के आगे दीपक का प्रकाश बड़ा कमजोर होता है किंतु दीपक प्रतीक है-आशा का, विश्वास का। कवि दीपक को स्वाभिमान का प्रतीक मानते हैं और उसका अभिनंदन करते हैं। समाज में रहने वाला व्यक्ति प्रवाहमयी जीवन की धारा में बहता चलता है। कभी डूबता है तो कभी अपनी छलनी होती आत्मा और कुंठित होते मन को इस बीहड़ जीवन रूपी जंगल में भटकने देता है जिससे वह कुछ पाए और कुछ खोए। इन्हीं पाने और खोने के क्षणों का नाम जीवन है। यह जीवन सौंदर्य से परिपूर्ण होता है और कवि इसी सौंदर्य को शब्दों का बाना पहनाता है। अब धीरे-धीरे सौंदर्य के प्रतिमान बदल रहे हैं, यही कारण है कि कवि ने खिली खिली नागफनी को सौंदर्य का प्रतीक मानते हुए अपने उद्गारों को शब्द दिए हैं।
-प्रो. निर्मला एस.मौर्य

Author

ईश्वर करुण

ISBN

978-81-19231-56-0

Format

Paperback

Language

Hindi

Pages

118

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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