कह गया मैं तो (Kah Gaya Main To / Manoj Arya)

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हिन्दी ग़ज़लकार मनोज आर्य की ग़ज़लों में शेरियत‌ और भाषा का अद्भुत आस्वाद मिलता है। उनकी ग़ज़लें आम आदमी के सरोकारों से सीधे-सीधे जुड़ती हैं। वे कुछ-कुछ अदम गोंडवी के अंदाज़ में व्यवस्था की ऑंखों में ऑंखें डालकर बात करने का साहस करते हैं। प्रेमचंद ने ‘जीवन में साहित्य का स्थान’ लेख में लिखा है कि ‘सत्य जहाॅं आनंद का स्रोत बन जाता है,वहीं वह साहित्य हो जाता है।’ मनोज आर्या की ग़ज़लों में समकालीन समय और समाज का बहुआयामी सत्य उसी आनंद की सृष्टि करता हुआ देखा जा सकता‌ है जिसकी बात प्रेमचंद करते हैं।
मनोज आर्या के यहाॅं आकर्षक भाषा और कहन के साथ-साथ अंतर्वस्तु का भी भरा-पूरा संसार मौजूद है। साहित्य का मूल उद्देश्य तो लोगों को जगाने का है,रिझाने का नहीं। लेकिन मनोज आर्या की ग़ज़लें लोगों को जगाती भी हैं और रिझाती भी हैं। उनकी यह साहित्य-चेतना संकलन की ग़ज़लों को पढ़कर ही अनुभव की जा सकती है।

– कमलेश भट्ट कमल
ग्रेटर नोएडा वेस्ट

Author

Manoj Arya

Format

Paperback

ISBN

978-81-19590-83-4

Language

Hindi

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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