‘समकालीन दोहा’ के सुधी साधकों में से एक प्रमुख नाम डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ का है। उनकी दोहे के शिल्प पर अच्छी पकड़ है और कसे हुए दोहे लिखते हैं। डॉ. शैलेष न केवल दोहाकार हैं, बल्कि दोहा के अच्छे सम्पादक भी हैं। उन्होंने राजनैतिक पतन, सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं, नारी की दशा, रिश्तों के खोखलेपन, पर्यावरणीय ह्रास, हलधर के हालात, पाखण्ड, नैतिक पतन, स्वार्थ-लोलुपता आदि अनेक विषयों पर दोहे लिखे हैं। बिम्ब और प्रतीकों से सजे उनके तमाम दोहे परत दर परत समाज और राज की कलई खोलते हैं। सहज-सरल भाषा में लिखे गये इन दोहों में कवि ने प्रभावोत्पादकता बढ़ाने के लिए अन्य भाषाओं के शब्दों का भी उदारतापूर्वक प्रयोग किया है। शैलेष जी ने विविध प्रतीकों और अलंकारों का प्रयोग करके दोहों को प्रभावी बनाया है। संग्रह के लगभग सभी दोहे कथ्य और शिल्प दोनों कसौटियों पर खरे और पठनीय हैं।
– रघुविन्द्र यादव
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