जिस्म नीले हो रहे हैं (Jism Neele Ho Rahe Hain / Ranvijay Kumar Shriwastava)

149.00

Buy Now
Category: Tag:

रणविजय कुमार श्रीवास्तव जीवन के विविध पक्षों के ग़ज़लकार हैं। इन्होंने ग़ज़लों को जिया भी है, भोगा भी है और महसूस भी किया है। इनकी ग़ज़लों में न केवल खिलखिलाते हुए बच्चे हैं अपितु माथे पर बोझ उठाये थरथराते कदमों से चलते हुए बच्चे भी हैं। प्रकृति को भी इन्होंने गंभीरता से लिया है। प्रकृति जहाँ एक ओर इनकी आंखों का दृश्य और सपना है तो वहीं दूसरी ओर प्रदूषण को झेलता हुआ एक विस्तृत मानव समुदाय भी है। ग़ज़लकार इस प्रदूषित वातवरण में भी प्रेम और सपनों की ग़ज़ल कहता है जो इनकी अपनी विशेषता है। इन्हीं विशेषताओं के बल पर इन्होंने हिंदी ग़ज़ल में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। इनकी ग़ज़लें एक साथ कई सम्बन्धों को पकड़ती हैं चाहे वह सामाजिक हो, आर्थिक हो, राजनीतिक हो या प्राकृतिक हो। इनका बहुआयामी दृष्टिकोण हिंदी ग़ज़ल को एक नई चेतना और कथ्य को परिपूर्ण करता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आज के परिदृश्य को पकड़ते हुए रणविजय कुमार श्रीवास्तव जी की ग़ज़लें हमें आह्लादित करती हैं और झकझोरती भी हैं।
डॉ. अनिरुद्ध सिन्हा

Author

Ranvijay Kumar Shriwastava

Format

Paperback

ISBN

978-81-19590-05-6

Language

Hindi

Pages

108

Publisher

Shwetwarna Prakashan

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “जिस्म नीले हो रहे हैं (Jism Neele Ho Rahe Hain / Ranvijay Kumar Shriwastava)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart
Scroll to Top