धर्मेंद्र गुप्त ‘साहिल’ एक ऐसे अनूठे ग़ज़लकार हैं, जिन्हें लेखन में कोई हड़बड़ी नहीं है। वे थमकर लेकिन बेहतर लिखने में यक़ीन करते हैं। उनकी ग़ज़लों की ज़मीन उनके संघर्षशील जीवन की वैयक्तिक अनुभूति से निर्मित हुई है। उनकी ग़ज़लों में प्रेम एवं संवेदना का अद्भुत मिश्रण मिलता है।
सर्वत्र प्रतिरोध और आरोप-प्रत्यारोप से भरी ज़िन्दगी में प्रेम और संवेदना के लिए जगह कम पड़ती जा रही है। ऐसे में धर्मेंद्र गुप्त साहिल अपनी प्रेम ग़ज़लों के साथ हिंदी कविता की दुनिया में रिमझिम फुहार की तरह आते हैं। उनकी ग़ज़लें आशा, उत्साह और आस्था की त्रिवेणी के रूप में हमारे सामने हैं।
-डॉ. भावना
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