साहित्य की अनेक विधाओं में मुकरी का अपना विशिष्ट स्थान है। मुकरी दो व्यक्तियों के बीच पहेलीनुमा द्वयर्थक संवाद है, जिसमें मुकरने का भाव निहित होता है। हिन्दी साहित्य जगत में अमीर खुसरो ने इस लोककाव्य-रूप को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। मुकरी श्रोता या पाठक का मनोरंजन करने के साथ साथ उसके बुद्धिचातुर्य को परखने और उसे विकसित करने का कार्य करती रही है।
कुछ साहित्यिक विधाएँ बदलते कालखण्डों के साथ कदमताल नहीं कर पातीं, किन्तु मुकरी वर्तमान समय में भी प्रासंगिक एवं लोकप्रिय सिद्ध हो रही है। यह मुकरी का अपना आकर्षण है कि आज अनेक रचनाकार इस विधा की ओर उन्मुख हुए हैं। डॉ. बहादुर मिश्र, त्रिलोक सिंह ठकुरेला एवं तारकेश्वरी ‘सुधि’ ने मुकरी विधा के संकलन सम्पादित करके इस विधा को जनप्रिय बनाने में सहयोग किया है, किन्तु डॉ. सतीश चन्द्र शर्मा ‘सुधांशु’ ने एक वृहद संकलन का सम्पादन करके उल्लेखनीय कार्य किया है। सड़सठ मुकरीकारों का एक संकलन में होना ऐतिहासिक और अद्वितीय कार्य है।
– त्रिलोक सिंह ठकुरेला
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