हमको बोलने तो दीजिए (Humko Bolne To Dijiye / Dr. Ranjana Gupta)

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ग़ज़लें चाहे किसी भी काल की हों, वह मानसिक व्यायाम नहीं बल्कि हार्दिकता का स्पर्श होती हैं। संवेदना और बेचैनी पैदा करती हैं ताकि अपनी दुनिया को बदलने का ख़्वाब देख सकें। ग़ज़ल का कथ्य कुछ भी हो, ग़ज़लकार की संवेदना जहाँ पाठक या श्रोता की दबी संवेदना को खुरचकर जगा दे ग़ज़ल वहीं संभव होती है।आज हिंदी ग़ज़ल जिस मुकाम पर खड़ी है, बहस का एक अलग विषय है।
समकालीन ग़ज़लों के गहन अन्वेषण के क्रम में रंजना गुप्ता ने अपनी ग़ज़लों में ग़ज़ल के यथार्थ और सौंदर्यबोध और इन दोनों के अन्तरसंघर्ष से पैदा होनेवाली बेचैनी, नाद की अर्थव्यंजना को ख़ूबसूरती के साथ पकड़ने का प्रयास किया है। आज की हिंदी ग़ज़ल अपने समय की विद्रूपताओं के सामने तो खड़ी है लेकिन रंजना गुप्ता की चिंता ग़ज़ल के बुनियादी स्वभाव अर्थात् कोमलता और संवेदना को बचा ले जाने की है।
इनकी ग़ज़लों में अनेक मोड़ और पड़ाव दिखाई देते हैं जिन्हें इनकी समग्र ग़ज़लों के पाठ के बाद समझा जा सकता है।
संग्रह की तमाम ग़ज़लों में नाद, अर्थव्यंजना और शिल्प के स्तर पर कुछ ऐसा है जो विमर्श के द्वार खोलते हैं।

अनिरुद्ध सिन्हा
गुलज़ार पोखर, मुंगेर (बिहार)-811201
Mobile-7488542351

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