प्रस्तुत संकलन में एक हज़ार से अधिक हिंदी ग़ज़ल के शेर संकलित हैं, जिसके संकलनकर्ता हैं हिंदी के सुपरिचित ग़ज़लकार, श्री राजेन्द्र वर्मा। संकलन में कुछ गिने-चुने ग़ज़लकारों के अलावा अधिकांश के एक-एक शेर ही संकलित हैं। इस प्रकार संकलन में लगभग हज़ार शायर भी शामिल हैं। यह अभूतपूर्व है। इन शेरों में कहीं तत्सम की छटा है तो कहीं बोलचाल की हिंदुस्तानी का रंग, लेकिन उनका कथ्य उर्दू ग़ज़ल की भाषिक परम्परा और बिम्ब-प्रतीक- योजना से अलग है। उनके चुनाव के दो आधार-बिंदु रहे हैं : कथ्य में यथासम्भव नवीनता हो और उसका उद्देश्य स्तब्ध करने की बजाय पाठकीय चेतना को ऊर्ध्वगामी बनाने वाला हो। विसंगति-चित्रण के साथ सरोकार भी हो। प्रकृति-चित्रण में जीवन का स्पंदन भी हो। वैयक्तिक अनुभूति या पीड़ा जब कला से संस्पर्शित होती है तो वह प्रातिनिधिक बन जाती है। काव्य का आधार यही है। युगबोध और उद्बोधन कविता के प्रमुख अंग हैं। दर्शन और प्रकृति के मानवीकरण की उपस्थिति साहित्य को रम्य बनाती है। शेर में तो उसकी चमक देखते ही बनती है। प्रेम विषयक शेर के चुनाव में प्रयास यही रहा है कि उसमें संयोग-वियोग की भावना का चित्र भर न हो, प्रेम की उदात्तता अथवा मार्मिकता का भी समावेश हो । भाषा की दृष्टि से उन शेरों का चयन किया गया है जिनमें तत्सम के साथ-साथ उर्दू के प्रचलित शब्द हैं, हिंदी के सांस्कृतिक धरातल को उभारने वाले मुहावरे तथा मिथ हैं। इन्हीं से तो हिंदी ग़ज़ल बनी है। संकलनकर्ता की दृष्टि संकुचित नहीं रही। यहाँ, तमाम शेर ऐसे भी शामिल हैं जो हिंदी की ज़मीन पर कहे गये हैं, भले ही वे उर्दू ग़ज़ल के बाबा अदम, वली दकनी के यहाँ से चले हों।
Author | संपादक: राजेन्द्र वर्मा |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-93-95432-62-7 |
Language | Hindi |
Pages | 204 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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