बृजनाथ ने मुकम्मल बहरों -छंदों के साथ अपनी गजलों में जीवन के विभिन्न आयामों को बड़ी ही संजीदगी से जिया है। प्रत्येक गजल का प्रत्येक शेर मानव जीवन की कोई न कोई दास्तान कहता हुआ अवतरित होता है। निस्संदेह वे एक कल्याणकारी मानव समाज के पक्षधर हैं। उनकी गजलें इसका जीता-जागता सार्थक उदाहरण हैं। विश्वास है कि सहज, सरल और भाषा के साधारणीकरण के परिधानों को ओढ़े ये गजलें रसिक पाठकों और श्रोताओं के स्नेह का भाजन बनेंगी।
-डॉ. रेशमी पांडा मुखर्जी
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