अपने प्रथम नवगीत संग्रह ‘हम न हारेंगे अनय से’ के माध्यम से अक्षय पांडेय ने जो अनय से न हारने का संकल्प लिया था, उसकी परिणति अब बुद्ध के हँसकर बोलने में साफ-साफ दिखाई दे रही है। रचनाकार संभावनाओं का आकाश लिए सामाजिक संदर्भों प्रतिबद्धता के साथ जीने के लिए कटिबद्ध है।
अक्षय पांडेय जिस आधुनिकताबोध को अपने नवगीतों में शिद्दत से जीते हैं, उसमें होगा हुआ यथार्थ कनखियों से देख रहा होता है। उनके नवगीतों का टटकापन, उसकी लयात्मकता से मिलकर सामाजिक सरोकारों का ऐसा ताना-बाना बुनते हैं कि आस्वाद बिंब भावों का मरहम लगाने के लिए उद्यत दिखाई देते हैं।
अक्षय पांडेय अपने प्रथम नवगीत संग्रह की भाँति अपने इस संग्रह में भी उसी तेवर और प्रतिस्पर्धा के साथ सामने आए हैं जो उनके जीवंत होने का अभिनव प्रयोग है।
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