प्रेम जीवन का शास्वत सत्य है। जबतक धरती है, प्रेम भी रहेगा। साहित्य कोई द्वीप नहीं है। वह भी हमारे जीवन से ही निकलता है। अतः साहित्य से प्रेम को विलगा कर न हम साहित्य का भला नहीं कर सकते। जीवन में जिस तरह भूख-प्यास, सुख-दुःख, ठंडी-गर्मी का एहसास होता है, वैसे ही प्रेम का भी एहसास होता है अतः ग़ज़ल जैसी कोमल विधा में प्रेम का न होना संभव नहीं।
इस संग्रह में तीन पीढ़ियाँ एक साथ अपने प्रेमिल जज़्बात को व्यक्त कर रही हैं।
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